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________________ ९ २८० ) डीघांगालविगाआराम लरत सेलङ जएगगार, बुङ सह्येतिहांलवपारा लविगान्नसी भयालीने जीवयासी, निहां सिन्हा उरमने जाणी॥लकि जाग्ने तीरथे हेतु शिवसुजसहीजें, भहिभा जवाथ्य ही गलि छरी पासतायेगें नर्धों, निन पूल निर्माण थर्धालविगापावीर विधन मेम हीसभांधारी, सिध्य गिरि सेवो नरनारी ॥ालविणासभरे घ र्भयं जीगते सूर, उरवा उश्मयम्यूशालविणा॥ ॥ति॥ ॥ अथ जांजेसनी जोणीनुं स्तंवन ॥ भोलवित्राणीरे सेवो ॥ सिध्यपक घ्यान सभी नहीं भेवो ॥ जोलविणाश्जे जांएगी॥ने सिध्ययकने जाराधे, तेनी वीर्ति नगमां वाघेाजोलविणाशा पेहेले पहेंरे जरिहंत, जीने सिध्यजुष घ्यानम तात्रीने पहेंरे सूरीसर, थोथे डीवायने पांयमे भुनिसशानोलवि शाछठ्ठे हरशन डीने, सातमेज्ञानथी शिव सुजलीनें ॥जाभे या रित्र पाणी, नवमे तपथी भुङ्क्तें नवो।जोलविगाआश्रोणी सांजेल नीडीनें, नोडारवाणी वीराणएगीनें गात्रणे टंडनारे हेव, पलेएा पडिङम या सांजेला खोलविणान्नागुरभुज डिरियारे जीनें, देव गुरैलक्तिचित्तमां घरीनें ॥ खेम उद्देशभनो शिष्य, खोजी बीन्वन्ने नगहीशाचा ॥ जय श्री सिध्ययनुं स्तवन ॥ सांलणरेतुं सननी भारी, रननी ज्यां रमीजावीलरेशास्ने देशी श्रीवीर प्रलु लविननने सेम डेहे, लाव घ्या हिल जाएगीलरेशसुरत रेसम सिध्ययक नाराघो, बरखा शिववधू राएगी ॥ सुलविया सुए। भेला शिवडार्थनुं भुज्य डारएा नवपर, छे गुणी गुएा पायरकरे अरिहंत सिध्घसूरी जीवण्डाये, साधुवर हरशन घाशासुलवियानाशा ज्ञान चरित्रतपश्येनवपध्नुं, नाराधन श्रेणी परेंडीनें करे ॥जासो ऋशुहि सानमयी, मांजिल स्रोणीभांडीनें ॥ सुलवियानाआथैत्य पूल For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org Ja Educationa International
SR No.003689
Book TitleJain Kavyaprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages504
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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