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________________ ( २९८१) हरषे ते हना पश्एाभल नएगी ।सुरनर सारेरेशेवाश्रीनिनगानाध्यानें हवा मलुतो आलस मांहेरे गंगान्नम सलङरी भानुंतेह थीपासुनस विलास सुरंगानिनगाचा भस गडास सातमी ॥ऋषलनो वंश रयणाय । श्ने देशी ॥ पुज्जर प छिभ लरतमां, घारो जतितयोपीशीरेश थोथा प्रसंजनिनेसर, प्रामुं यडले हिंसीरे॥पाहवा साहिजनवि वीसरं, क्षिए। क्षिएा समरीयें हेनेरे मलुगुएाश्ननुलव योगथी, शोलीये जातभतेने रे ॥ मेहवानाशात्रेयां उगी॥छड़ा चारित्र निधि सानमा, प्रसभरान्ति गुए। घामरे । हुवे वर्तमान श्रोवीशीयें, समरीने नित्यनाभरे। नेहवाना आस्वामी सरवज्ञ नयंडई, मे ज्वीशमा शुए गेहरे ॥श्रीविपरीत खोगएगीशभा, नविहड घरभ सनेहरे हवामानानाथ प्रसाह जढारमा, हवे जनागत पोवीशीरेशा थोथाश्रीग्नघटित निनावंहीये, धर्म संतति निलो पीसीरे ॥ मेहवानामाश्री लेंट छट्टा नभुं, रिषल संशलिघचंदूरे ॥ सातमा नगनशन्यउरे, निन गुएा गातां खाएांदूरेश नेहवाना ढास आइमी।न्वंतरीयां मुनिवर घन घन तुभग्नक्ताशाओ हेशी नंजुद्दीप भैरावतेल, जनित योदीशी दियाशा श्रीघ्यांत पोथा नपुंल, नग नननाभाघाशाशाभनमोहन निनन्छ, भनथी नहीं भुञ दूशाखेमांडणी ॥ नलिनंदन छट्टानभुंल, सातभा श्री रतनेसावर्त्तमा नथोपीशीयें, हवे ग्निनाम गणेश ॥ मननाशाश्यामष्टमेडवीशभांळ, श्रीगणीशभांभई हेव ॥श्री जति पार्श्व अढारमाल, समरं चित्त नितभेवाभनगाआलावी योवीशी वंहीयेंल, पोथा श्रीनंहीजेएणाश्रीज तघर छठा नभुंल, टाले उरभनी रेएाभनगामाश्री निश्वाएा ते सातभा ल, तेहशुं सुनस सनेहानेम डोर वित्तसंहशुल, तेभभोमनमेापा राढास नवमी। प्रथमगोपालीमा तो लवेळा नेहेशी ॥ पूरव जरघें घातडील, भैराक्ते ने सतीता। यौवीशी तेहमां उहुन्छ, उस्याणि उसुमतिताशा महोध्य सुंदर बिनवर नाभाग्ने जांएगी ॥ थोथा श्री For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Educationa International
SR No.003689
Book TitleJain Kavyaprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages504
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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