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________________ ( २३४ ) रे, रेनाहे पी माहुडीघोरे ॥णार्धश्वर नारीयें नयायोरे, प्यह्माध्यानथी श्राव्योरे ॥अर्ध अर्ध उरम प्रधानरे,लत्यालत्या श्रीवर्ध्यमानशाला ॥ ढास घ्शभी ।। महया सवि, धीर पुरष महावी॥जार वर्ष तप्योतप, ते सघुलो पिएानीशाशासिवृक्ष तसे प्रलु, पाभ्याडेवसज्ञान ॥ सभोसर ए स्पेसुर, देशना द्येन्निलाए ॥ जपापा नयरि, यज्ञरे विप्रनेहा सवे जूनची हिज्या, पीरने वंहे तेहाणौतम ऋषी जाहें, चारशें चारह न्नशासहस्स पौह मुनिसर, गए। घर वर घेण्याशाशायघ्न जासामु ज, साघवी सहस छत्रीश । होट साज सहस नव, श्रावयेनाशीशा गए। साज श्राविा, जघमी सहस जढाशासंघ चतुर्विधथाप्यो, घन घनग्निपरिवाशानुग्नशोऽ तर तसे, त्रिगडे उरेग्नवजाए ॥ सुऐ जारे परजा, योग्नवाणी प्रभाए ॥ त्रा छत्र सोहे शिर, यामर ढाले ईशानाय्ड जध्य जत्रीश, योत्रीश अतिशय निघानास पणरल रेसुरूपाने दुंदुलि नाधानमे सहख सुरासुर, छाडी सवि परभाद्याथि ॐ धूपें सोहे, धर्म प्रमशे श्राशायोवीशमो निवर, नापेलवनोपार चालुवर्ष जोहो तेर, पासी निर्भस ग्नायात्रिलुपन डीपणारी, तरएतारए। न्निरायाचिङ भासे हिन, हीवासी निखाएगा। प्रलुभुङतेपो होता, पामे नित्य उल्याए झा ॥ उसरा । यि वीर न्निवर सयस सुजङर, नामे नवनिधिसंप घर ऋष्पिवृष्धि सुसिध्धि पाये, जेङ मनाने नरलने गातपगच्छ ठाकुर गुएावैरागर, हीरविन्य सूरिश्वरी ॥ हंसरान चंधे, मन श्नानंहे, उन्हे सुन जे गुणो ॥ ॥ति श्री महावीर न्नि स्तवन संपू ॥ अथ श्रीनेभरान्तमतीना जार भास प्रारंभ ॥ सजिनोरा साउत, गया निनभहिरे ॥ने नन्य भेलावोडीय, तेभुनसांरे॥घर सावत आली हाथहुँ, हेडीडीतरी ॥पएा उरीवरघोडो in Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibra org
SR No.003689
Book TitleJain Kavyaprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages504
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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