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रे, रेनाहे पी माहुडीघोरे ॥णार्धश्वर नारीयें नयायोरे, प्यह्माध्यानथी श्राव्योरे ॥अर्ध अर्ध उरम प्रधानरे,लत्यालत्या श्रीवर्ध्यमानशाला ॥ ढास घ्शभी ।।
महया सवि, धीर पुरष महावी॥जार वर्ष तप्योतप, ते सघुलो पिएानीशाशासिवृक्ष तसे प्रलु, पाभ्याडेवसज्ञान ॥ सभोसर ए स्पेसुर, देशना द्येन्निलाए ॥ जपापा नयरि, यज्ञरे विप्रनेहा सवे जूनची हिज्या, पीरने वंहे तेहाणौतम ऋषी जाहें, चारशें चारह न्नशासहस्स पौह मुनिसर, गए। घर वर घेण्याशाशायघ्न जासामु ज, साघवी सहस छत्रीश । होट साज सहस नव, श्रावयेनाशीशा गए। साज श्राविा, जघमी सहस जढाशासंघ चतुर्विधथाप्यो, घन घनग्निपरिवाशानुग्नशोऽ तर तसे, त्रिगडे उरेग्नवजाए ॥ सुऐ जारे परजा, योग्नवाणी प्रभाए ॥ त्रा छत्र सोहे शिर, यामर ढाले ईशानाय्ड जध्य जत्रीश, योत्रीश अतिशय निघानास पणरल रेसुरूपाने दुंदुलि नाधानमे सहख सुरासुर, छाडी सवि परभाद्याथि ॐ धूपें सोहे, धर्म प्रमशे श्राशायोवीशमो निवर, नापेलवनोपार चालुवर्ष जोहो तेर, पासी निर्भस ग्नायात्रिलुपन डीपणारी, तरएतारए। न्निरायाचिङ भासे हिन, हीवासी निखाएगा। प्रलुभुङतेपो होता, पामे नित्य उल्याए झा
॥ उसरा । यि वीर न्निवर सयस सुजङर, नामे नवनिधिसंप घर ऋष्पिवृष्धि सुसिध्धि पाये, जेङ मनाने नरलने गातपगच्छ ठाकुर गुएावैरागर, हीरविन्य सूरिश्वरी ॥ हंसरान चंधे, मन श्नानंहे, उन्हे सुन जे गुणो ॥ ॥ति श्री महावीर न्नि स्तवन संपू
॥ अथ श्रीनेभरान्तमतीना जार भास प्रारंभ ॥ सजिनोरा साउत, गया निनभहिरे ॥ने नन्य भेलावोडीय, तेभुनसांरे॥घर सावत आली हाथहुँ, हेडीडीतरी ॥पएा उरीवरघोडो
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