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रन्एिांध्ने, नमतांग्जतिसुजयायाशाज्ञान दर्शन धारित्रनो, कुंप रस्पर संवाधात्रिङ योगें सिध्धि हुवे, मेहवो प्रवयनवाद्याशासभडि तगुएान्स पित्तरभ्यो, तेहुने न वाह विवाद्यासभुायथी जेड अंश यही, भुज्यउरे तिहांवा॥आ
ढाल पहेली
॥ लसनांनी देशी ॥ ज्ञानवाही पहेलो उहे, त्रिभुवनमांडुंसारल सनातनय निक्षेप प्रभाएानो, थडी अनुयोग विधार ललना॥शाज्ञान लगो लवि प्राणीखाश्नेमांडणी छ। सप्तलंगी षड व्यनुं, भुञषिए। हुए। सहे तत्त्व ससना ॥जंलि सिपीने प्रएाभीया, गएराघराहिङ महा सत्व ससना ॥शाज्ञागाभेरे सूर्यने छेनी, पीपमा ज्ञानीने होयलल नामुञविएा भूरज पशुतणी, जेड़वी बीपम तसन्नेय ससना आ ज्ञानाज्ञान पछी निनरान्ने, नरिहंत पहहीय लोग्य सतना।लोग चवीने ज्ञाननो, छीपदेश डेहवो ने लेग्य ससना ॥ चाज्ञानाज्ञान प छी क्रियाम्ही, घ्शचैडासिङ वाए। सलना। ज्ञानगुणें उरी भुनिउलो जीत्तशध्ययन प्रभाए। ससना चाज्ञानाहीप घट हेजावशे, घटथी दीपऊन हेजाय ललना ॥जप्रतिपाति गुणज्ञानछे, महानिशिथ्यें उन्हे वायवसनाज्ञानाश्नघि सर्व पाता थडी, अज्ञानी नन्नो योन सतना। आत्मस्वरूप लएया विना, जिरे निभ जंगल शेन्ग्लसना जांज्ञानाक्रियाचिएा जडु सिध्धि सहे, तापसाहिङ दृष्टांत लसना ।। गनजे भरे हेपीने, जापी में भुक्ति जे अंत ससना नाज्ञाणाश्ञज्ञान वाही खेभ उद्दे, जापे भोक्षन ज्ञान ससना बीत्तर धर्म संग्रहणीथी, उ उन्ने मुल जहु मान ससना ज्ञागालवने ज्ञान जलेहछे, भुड विपलव अलव ससना ॥ श्ञक्षरनो अनंतभो, लाग डीघाडो सहीव ससना ॥१०॥ ज्ञानाक्रियायें डोई जाल छे, ज्ञान नयें जन्भास ससना भुनिने सेवा योग्य ते, जोले डीपहेश भास ससना पिशाज्ञानाहे पायास्य भस्स वाहिल, नग नसवाह सहंत लसना॥जोधलत्याभु
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