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जागेल, अंतिशोला हारी॥नचि मंडित होय होय भागेल, सहु नभे निर्धा शाखातुं साहिज ढंगनो हीवोन्ड, अंधार पारी ।लक्ष भएगानंदन यि रंकवोल, न्णमोहन घरी ॥ उहे पद्मविन्य उई सेवा, सर्वदूरेंडारी भि सहियें शिवसुज मेवाल, जनुपभश्नवधारी ॥५॥ ईति
॥ अथ श्री सुविधिग्निस्तवना ।। वाडी सी जति लसी मनलभरारे ॥ जे देशी ॥ ॥सुविधिन्नि पतिसेवयें मनमोहन मेरे। नंतर सुविधि संघाभगानेडी छोडि सागर तगमनाप्रभो लन्निधामना शशुावहिनोभिचव्या ॥ भगारामा पीरसर हंसाभिगाभागशिरवहि पन्थिभेन्ग्एया। मनाही पाच्यो सुग्रीव वंशााभगाशास्त्रेऽशो धनुषाया लसी॥भगावरए| ह अनुहार रामनामागशिर वहिछप्रतीभव सीधी संयम नाशाभगाआशुहि अर्ति त्रीने थथा ॥भनासोङालो उनान्नाभिगालाघ्श्वाशुहिनवमी हिनेंग्रामणामनुपाभ्या निखा एगमनाहोय साज पूवत॥ भणान्निवर बीत्तमं नायामिवाप झविन्ग्थ उहे प्रएाभतां ॥भगा नापेर दूर पलाय ॥ भगाया
॥ अथ श्रीशीतस निग्न स्तवन ।
वारी कुंगोडी पाशनी ॥ थे हेथी । शीतलनाथ सुहंडनम तालवनयन्नया मोहन। सुविधिशीतल विधे जांतो, नवोडि सागरथाय ॥ भोगाथा वैशाजवहि छठे श्रव्या, महावहि जारशेजन्म भोगाने की धनुष सोवन चने, नवि जांघे डोर्घ अभ्माभोगाशाशीना महावहि जारशें नाहरी, हीक्षादृक्ष निनंद्याभोगा पोष अंधारी यौहशें, डीग्यो ज्ञान हिएांधाभोगाआशीना साज पूश्वनुं जीजूं जी वैशाज वहि भासा भोगाश्नन्यभर सुजिया थया, छेद्योलवल यपास भोगानशीना जे दिन बीत्तम प्रेएाभतां, जन्ग्राभर होयें
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