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॥ अथ श्रीनमिनाथन्निस्तवन ॥
॥ श्रीनमिग्निनी सेवाऽरतां, जषिय विधन सविदूरनासेल जष्टमहासिद्धि नव निधि सीसा, नावे जहु महभूर पासेंलाश्रीना शाभयभंता जांगए। गन्गाने,राने तेलतुजार ते भंगालाजेाजेटी जंघवन्नेडी, सहिजें जहुअघिद्वार रंगाला श्री गाशा वस्सल संगम रंग सहीनें, जए। बाहुला होय दूर सहे तें वांछानो विषंजन दूले, डारन सीने लूरि सहिनें लगा श्रीगाआ यंत्र डिरए। जीन्न्चल यशडीलसे, सूर तुष्यमतापी घीपेन्ठाने प्रलुलङित उरे नित्य विनये, ते अरियएाजहु प्रतापी लपेका श्रीगानामंगल भाषा सच्छी विशाला, जाता जहुते प्रेमरंगेश्रीनय विनय विष्नुध पय सेवऊ, उड़े सहिसें सुज जेभ गेला श्रीनभिणाचा र्धति॥
॥ अथ श्री नेमिनाथ ग्निस्तवन ॥
॥ जारसाहिन हुंन्नएातीरे शंगाने देशी । तोरए। जावी रथ है रिगयारे हां, पशु यांहेर्घ होश मेरे वासीभांगानवल नेह निवारिजो रे हां, श्योन्नेर्ध भाव्यान्नेशा मेनाथंह दुसंडी नेहथी रेड़ां, राम ने सीता वि योगाभेना तेह सुरंगने चयएगडे रे हां, पति जावे हुए। सोगा भेगाशाठीता री हुं चित्तथी रे हां, मुक्ति घृतारी हेत । मेगा सिद्ध अनंते लोगवी रेहां, तेहथं श्वएा संडेता भेगाआ प्रीत उरतां सोहिसी रे हां, निख हेतां नं साभेिगाने हवोच्व्यास जेसा चोरे हां, ने हवी अग्निनी झाला भेगाना ब्ले विवाह जवसरे हिजो रे हां, हाथ पीपर नविहाथा भेगातो दीक्षाअवसर हीलिये रे हां, शिर डीपर नगनाथ ॥ मेणापार्धिम चणचणती शब्द सगर्छरे हां, नेभिङने व्रत सीधा मेणावधि यश उहे प्रएाभियें रे हां, से दंपती होय सिध्या मेणाति
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