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________________ ( १७७ ) डीघु, चित्तडुं सभारं योरीने सीघु॥ साहेजा वासुपूज्य निएगंध, मोहना वासुपूज्य आएगी |नमे पातुमशुं अभए। म्रशुं, लम्ति यही भन घरमा घरशुंगा साहेजागापाभन घरमा घरीया घर शोला, हेजत नित्य रेहेसो थिरथोलाभन वैकुंठ खडुंठित लङतें, योगी लांजेअनुलवयु तेंगासागाशा उसेशे वासित मन संसार, उमेश रहित मन ते लवपाशाले विशुद्ध मन घर तुझें जाव्या, मलुतोश्जमेनव निधऋद्धि पाव्या सागाउ सात रान जलगा अर्ध जेठा, पए। लस्ते जभ भनभाड़े पेशााणगांनेव जगाने रेहेतुं, ते लाएगा जड जड दु:ज सहेतुंग साना नाघ्याय ध्येयध्या नगुएाग्नेडें, लेह छेह डर हुवे टेडें। जीर नीर परें तुमशुं भणशुंचाय उयश हुहे हेनें हणशुं । साणाचा र्धति॥ ॥ अथ श्रीविभजग्नि स्तवन ॥ ॥ नमो नमो श्रीशेन गिरिवर । जे देशी ॥ ॥ सेवो लविना विभस निएरोसर, दुसड़ा सन्नन संगान्लानेवा मलुनुं दर्शन सेतुं, ते नाणसभांहे गंगाला सेवोनाशाश्अवसर पामीरजाप जस उश्शे, ते भूरेजमां पेहेसोन्यालूज्याने नेम घेवर हेतां, हाथनभांडे घेसीलगासेवोनाशात्लव अनंतभां दर्शन ही हूं, मेलु नेहवा हेजाडेला विडट ग्रंथिने पोसि पोसिजो, उर्भ विवर डीघाडेकासेवोनाआतत्त्वप्रीति उरि पाएगी पाने, विभणा सोडे चांक झालोया गुरै परमान्नहि शेतव, लर्म नाजेसवि लांलन्छ । सेवोनानालर्भ लागोतव प्रलुशं प्रेमें, बात ॐ भन जोसीला सरण तो ने हुर्घडे जावे, तेह नगावे जोसीला सेवोनापश्रीनय विनय विष्णुध पय सेवऊ, वाय यश उहे सायुंन्याओ पटन्नेडो हेजावे, तो नहि मनुवा सुंछ सेवोना॥ ॥ ॥ अथ श्रीजनंतग्निस्तवन ॥ ॥ साहसडिग्भेदेशी ॥ श्री श्जनंत निनशुं डरो ॥ साहेवडियां Ja Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrarorg
SR No.003689
Book TitleJain Kavyaprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages504
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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