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________________ ( १७१ ) मलत्योतुभेन्यतनामगाहरि लिमोयित्तस्तन्नामगाजघुउहायो गणतनामनाते डिभहोयअपमन्नामगाराणतीतुम्हेन्मयोतुम नणी भगाइंसेव॒तुझपायाभगाशरणरेजलियातरंगभगान्य शहेतससुजथायामगाणा - - ॥ अथ श्रीमन्तिवीर्यग्निस्तवन ॥ ॥ ढालाामेथिंडी उहाराषी।मे शी॥ राधनाश्रीशाहीवपुज्जरवरपछिभमरधे, विग्यनसिना वर्ष सोहेगानयरि भयोध्या भंडनस्पतिह,संछन निगगि भोहेगा लवियामन्तिवीर्यग्निपंगामेमांडपीशारापासखभुगटन गीनो,भात उनिनिधनयोग रनमाताराणीनो वासलप्रत्यक्षसुरभरि पायोगालगाशापुरम्नशुं उरिन्हुमोदूषण,हुमतसशोषपूर्ण हाओवासाहिजनाणुएगाई,पवित्र हुँलागालगागाभला शुरागरागंगाग्सनाही,डीमो उरमभषशास्मात पग्निलगन तिसहिये, यिधनंहलरपूरशालाना संसर्गमलेघरोपे,सभा प्तिमुनि भानपतेग्निपरशुराथुरातांषहिये,ज्ञानध्यानमेत्तानेरोग लगापास्पर्शज्ञानप्रएि परे मनुलवतां, जीरें निपासप्रपन्ने लवनतेपाभी, निस्तरीये लवपशालगादाशरणत्राएजाजा नग्निलोठनहींतसतोगश्रीनयविन्याविजुघपयसेबडया यशभजोसेरोलगाणा ता ॥ अथ श्रीभद्यशोविग्यलपाध्याय हत । -- ॥ योगीशीप्रारंलः ।। ॥ तत्र ॥ ॥ प्रथमश्रीऋषलग्निस्तवन । ॥महावित क्षेत्रसुहाभयोमेशीपागलपन गवालहो, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibra brg
SR No.003689
Book TitleJain Kavyaprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages504
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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