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________________ ( १९५ ) विहरे शान्ग्गिाधातिषी मेरे भन तुंवसिग्नोरे ॥ निजे जांएगी। यात वित्त निममेहसीरे, निग्भपंथी भन गेहरे ॥ निगाहंसा भन भानसरोवरे तिममुष्ठ तुञ्ञशुं नेहरे ॥निनाशान्भिनंदन चन मनेरे, शीताने वासो रामरेशनिवानिभ धर्मी भन संवरे, व्यापारी मन हामरे ॥निगाउ ग्जनंतवीर्य गुएासागरे रे, घातडी जंड भडाररे ॥निगा पूर्व अर्ध नलिना चतीरे, विन्थग्जयोध्या घार रेशा निनानाभेघ राय मंगसावती रे, सुत विन्यावती अंतरे ॥ निणाशन संछन योगीसई रे, निभसमरे महामंतने नापायाहे चतुर चूडामणिरे, उविता श्जभृतनी डेसीरे शनिवाचाय उन्नस म्हे सुन हिथे रे, भुञ तु गुए। रंग रेसिरे ॥ नि॥ ॥ ॥ जय सुर लग्निस्तवन ॥ ।। रामपुरा जान्नरभां ।।ग्ने देशी ।। सूर प्रलु न्निवर घातडी, पछि मय्जरन्यारी ॥ मेरे सासा पुज्जसवर्ध विन्यसुहामो, पुरि पुंडरणि एगी शिएराणाशामेरेणाशापतुर शिरोमणि साहिजो ॥ने मांडणीनंहसे नानो नाहुसो, हुय संछन विन्थ भल्हारााभेगाविन्यावती जे बीपनो, त्रिभुवननो खाधारा मेगापगाशा जसवेग्स साहुभुंन्नुवो, ईश्एशालय नयन विसासामेणाने पाने प्रलुतान्गती, भेड़वी छे प्रलु सुजवास गामेणाऱ्यनाशभुज भरडेनगन्नवश हुने, सोग्जए। सरडे हरे चित्ताभेिगा चारित्र पटडे पातङ हुरे, नटडे नहिं उरतो हित्तारामेणाधिगानाविगारी शिर सेहरी, गुएानो नविसावे पाराभेगा श्रीनय विनय सुशिष्यने, होन्ने नितभंगस भाला भेगायणाय त ॥ अथ श्रीविशासनिन स्तवन ॥ ।। सूहारीनी देशी ॥ घातडी जंडे होडे पछिम सरघे लसो, पिन्या नयरी होडे विप्र विनय तिलो । तिहां न्नि विथरे होडे स्वामी विशाल स घ, नितनित चंदू होडे विभला अंत भुट्टा ॥शानाग नरेशर होडे वंशपीद्योत For Personal and Private Use Only in Educationa International www.jainelibrary.org
SR No.003689
Book TitleJain Kavyaprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages504
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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