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(१९३ आशाऽपि संछन नसिनापती, विप्रविन्थ ग्जयोध्या नाहोरे । रंगें मिसिने तेहशु, खेह भएरन न्नभनो लाहोरे । स्वानाशाते हिनसवि जेसें गया, निहां प्रभुशुं गोहनजांधी रे।लङित दूतिङानेंभन हुत्युं, पएावात उड़ी छे खाघीरे ॥ स्वागागाग्ननुलव भित्तोमोसो, तो ते सधतीचातनएावेरे ॥पए। तेह विएा भुण्ड नविसरे, अहो तो पुत्र विधारते जावेरे शास्वा जातेोन्यात सर्व उही, प्रलुभत्या ते घ्यानने यएरोरे ॥श्रीनय विन् य विष्णुधतएगो, म सेवड सुन्श बजाएंगे रेगस्वानायता विता
॥ अथ श्री सुन्नतन्निस्तवन ॥
॥ रामसंडे जाग, यांपो महोरी रह्योरी॥ जे हेशी ॥ ।। साथी स्वामी सुन्नत, पूर्व ग्नरघ न्योरी ॥घातकी जंड भार पुष्सवर्ध विन्ग्योरी । शानयरी पुंडरीगिणिनाथ, हेक्सेन वंशतिसोरी!! हेवसेननो पुत्र, पंछन लानु लखोरी ॥शान्यसेनानी उंत, तेरुशुं प्रेम घ श्योरी ॥ श्जवर नग्नावे हाय, तेएगें क्शयित्तस्यो री ॥ आतुभेभतन्नएगो दूर, वर्ध परदेश रह्योरी ॥छो मुळ यित्त हन्नूर, गुएास ेत यह्योरी जागे लानु नामश, सरवर उभस हस्योरी ॥ हेजी संध्यहोर, पीवा अभिय घस्योरी॥चदूर थडी पए। प्रेम, प्रलुशुं यित्त भिष्योरी ॥ श्री नय विनय सुशिष्य, उहे गुण हेञ हिस्योरी ॥॥॥छति॥
॥ जय श्री स्वयंप्रल स्वामी स्तवन ॥
॥ पारधीरजानी देशी । स्वामी स्वयंप्रलु सुंदर रे, मित्र नृपति उस हंस रेरागुएा रसिया । भात सुभंगला ग्नमीग्जो रे, शशि पंछनसुप्रशं सरे॥भन वसिया ॥शविप्र विग्यं विन्या पुरी रे, घातडी पूर्व जर्म शाणुनाप्रिय सेना प्रिय पुष्यथी रे, तुझ सेवा में सघ रे ॥मगाशाया जवी समम्ति सूजडी रे, हेसवीग्जो कुंजाल रेशगुणा डेवल रतन हिया वि नारेन तन्नुंधरा विडाल रे । मनाआ जेङने लस्यावि रहीरे, खेज्ने
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