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________________ ( १९१ ) सालवताप चारड, नगत तार, न्यो न्निपति न्णशुशाशासंत्तर सय जीगगोतरें, रहि डलोई श्रोभासखे । शुहि मासभृणसिर तिथि अगीश्यारस,रख्या गुएा सुविलास मे ॥शायय धुर्ध मंगल डोडी लवना. पाप रन दूरे हरे ॥न्यवाद मापे डीर्ति थापे, सुनस हिसो हिसि विस्त रेश आतपगच्छ नायक विनय मलगुरू, शीष्य प्रेभविन्य तणो ॥ हे अंति सुतां लविङलएातां, सह्यो मंगल भवति घणो ।। पानीयें मंगल अति प्रणो ॥ ॥ति श्री मोनजेादृशी स्तवनं संपूर्ण ॥सा ॥ जथ श्रीयशविन्यठीपाध्यायद्धृत ॥ ॥ वीशी प्रारंभः ॥ ॥ तत्र ॥ ॥ प्रथम श्री सीमंधर स्वाभिस्तवन ॥ ॥ छंडर आजा जांजलीशाग्ने देशी ॥ ॥ पुष्पलवर्ध विनयेन्थोरे, नयरी पुंडरीगिणि साराश्री सीमंध २ साहिजारे, शय श्रेयांस दुभाशानिगहराय घरन्नं धर्म सनेहा खांडणी ॥शा मोटा नाहनां जांतरोरे, गिरेश्मा नविहाजं ताशशि दर्शन - सायर वधेरे, डैश्व चन विदुसंतारिनाशाहाम मुट्ठाभनवि सजवेरेन्‍ चरसन नसधाशर होर्घ दुसुभे वासीजें रे. छाया सवि व्याधाशानि आशय रंग सरिरजा गाएंगे रे. डीघोतें शशी सूशागंगानस ने जिहुतणीरे ताप उरेसवि दूशानिगाचासरिजा सहुने नाखारे, तिभ तुम्हें छो महा राज्यामुञशुं अंतर हिम उशेरे, जांहे श्रह्यानी सागरिभुज हे जी टीलुं हरेरे, ते नवि होय प्रमाए। ॥ भुनशे भाने सवितणोरे, साहिज नेह सुन्न निशानृषलसंछन माता सत्यही रे, नंदन भिगी तवान्स धर्म विनवेरे, लव लग्न लगवंत ।न्ध्रािय घरले धर्मसणाणा त Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003689
Book TitleJain Kavyaprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages504
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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