________________
( १४७ )
सिद्धा जहुलघ्ववंशरे, ते प्रएगमोरे मन हंसान्नित्रीगायापांये पांडव भेऐंगें गिरिजाव्यारे, सिद्धा नव नारह ऋषि रायारे, वसी सांज प्रद्युम्न उहायान्नित्रीणापाश्येतीरथ महिभावंत रे, निहां सिद्धासाघुश्ानंत रे, मलांजेश्रीलगवंत ॥न्नत्रीगावगाडीन्न्वसगिरि सभी नहीं डोयरे, तीरथ सघला में ब्लेयरे, ने इरस्यां पापन होयान्नियीना१शास्लप) जाहारी (२) सयित्त परिहारी (3)रे, पहयारीने लूमि संधारी करे, शुद्ध समतिरपौने व्यलारीद्गान्नत्रीगा१शानेम छहरीनेन उपासेरे, जहुहान सुपात्रे जातेरे, ते जनम भरएालय रासे ॥न्नत्रीणापत्र धन्य धन्यतेनरनारीरे, लेटे विमलायस खेड तारीरे, लीं तेहनी हु जसिहारी पात्रीणामाश्रीन्निहसूरि सुपसायें रे, निनहुर्ष होय तीच्छायेंरे, र्धम विमलायसगुएाणाये ॥न्त्री ना१५॥ छतिया
॥ अथ श्रीपांयारएानुं स्तवन ॥
॥ होड़ा ॥ सिद्धारथसुत चंहीजें, उग्गहीपड न्निरान्गावस्तुतः त्यसविन्नएपीजें, नस जागमथी भागाशास्याद्दाध्थी संपते, सडस वस्तु विष्यातासितैलंगरचना विना, जंघन जेसे वात॥शावादृवहे नयन्नूब्लुग्ना, ग्ञापश्नापणे ठामपूरए। वस्तु विधारतां, गोर्धनग्नावे प्रभाआनंघ पुरीषे जेहगल, ग्रही अवयव अडेआदृष्टिवंत सहे पूएशिन, अवयव मिली ग्जने आना संगति सम्सनयें उरी, लुगतियो गशुद्ध जोधाघन्य न्निशासन न्गन्ग्यो, निहां नहीं दिशो विशेषच ॥ ढास पहेली ॥
॥ राग खाशावरी ॥ श्रीग्निशासन नगन्यद्वारी, स्याद्दाशुद्ध परेशानयनेअंत मिथ्यात निवारएा, श्नम्स जलंगननूपरे ॥ श्रीना शाने मांडणी ॥डओ उहे खेड असतएंगें यश, सम्सन्गत गति हो यरे ।जलें जीपने डाले विएासे, जबरन डारए। डोयरे शाश्रीणाशाअ सेंगर्ल घरे न्गवनिता, डालें नग्न पूतरे । हायें जोले डायें पाले, डालें
Jan Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org