SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 161
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१३७) चली जन्मराभर गेहननापाधिन्य वासुपून्यना तीर्थने से, धन्य धन्य रोहिएगी नार ॥नगाजेतप े लावें डरेग्ने, पामेतेन्यन्याशानगा संवत ग्नठार जोगए शाहनी से, पीन्न्वस लाव भासानवाहीप विन्यें तसगार्धयोश्ने, उरी जलात शोभास ॥निवाणासशाावासुपू न्यन्ग्गन्नाथ साहेज, तासतीर्थे जेथयां। धारपुत्रने आठ पुत्रीय पती भुगतें गया। तपगच्छ विन्याएां परघर, विन्य हेवेंद्र सूरीसशातास राज्ये तवन डीधुं, सम्स संघ सोडीं ॥सस पंडितप्रवर लूषएा, प्रेमरत्न गुरं घ्याघ्या।। उवि ही पविन्यें पुएय हेतें, रोहिणीशु एाणार्धयाशा तय ॥ अथ श्री साहिनि विनति ॥ ॥ पानी सुशुई पसायरे, शत्रुन्य घएगी । श्रीरिसहेसर बीन ॥शा त्रिभुवननाथा हेवरे, सेवड विनति ॥नाहीश्वर अवधारीयें। ॥शाशरहों भाव्यो स्वाभीरे, हुंसंसारभांगाविश्श्जे वैरीयेंनड्योजे आतार तार भुन्ग्तातरे, वात डिशी उडुंगालन लवग्ने लावती पानान्न्मभरान्ग्लसरे, जाल तरेएापगावसीवसीन्राहहे घ जे पाडेमन आव्यो पाररे, सार हवे स्वाभी ।। श्यें नडशेश्नेऽभाह रीझताच्या तुझेंग्जनंतरे, संत सुगुए। वसी ॥जपराधी पा श्रीश्याने जातो जेड हीनध्यासरे, जाल घ्याभगोरा हुंशा भाटे - वीसस्यो ने गिरिजा गुएावंतरे, तारी तेहुने । ते भांडे जयरित डिश्युने ॥साने भुनसरिजो हीन रे, तेहुने तारांगण विस्तरशेन शघएगो मे ॥१॥ाग्नापहें पडियोजान रे, रामतुमारडे । चरएो हुंआ च्योवहीनेापाभुनसरिणो होधे हीन रे, तुन सरिजो मनुन्नेतान्णसाने नहीं जे ॥१शातोये हुईएगा सिंधुरे, जंधु लुवनतए नघटे तुभीवेजपुंश्मे ॥१॥तारएाहारो डोर्घरे, ने जीने हुवे ॥तो तुमने शाने हुंजे ॥ नातुहिन तारीश नेटरे, पहिलाने पर्छ । ती Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003689
Book TitleJain Kavyaprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages504
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy