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________________ C १३० श्वानस लागो, सोरीपुरमा भाम्रोलाशिल पोसह समरस जेठा, सो उम्हे हुडां शेन्नापुएयें हाट बजारो शेठनी, बीगरी सौ प्रशंसा रेन्डाहरजे शेहल तपढीनभएं, प्रेमहा साधें जाहरेलाशपुत्रने घ रनो लार लसावी, संवेगी शिर सेहरी लाथि डीनाएगी विन्ग्यशेजर - सूरि, पासें तपव्रतश्नाहरे॥ जटमासी धार यौमासी, होसय छठु सो सहुभ उरे का जीन्नं तप पए जहुश्रुतसुव्रत, मौन जे प्रहशी व्रत घरेन्छ।जाग्नेऽजधम सुर मिथ्यादृष्टि, हेवता सुव्रत साधु नेन्ापूर्वोपार्जित ऊर्मीहेरी, अंगें पधारे व्याधिनेावार्भेनडीजो पापेंन्डीग्जो, सुरम्छे लग्जो नौषध लशीला साघुनन्नयेरोषलरा ये, पाटु प्रहारे हुएयो मुनिजभुनिभन वर्धनडाय त्रियोगे, घ्या नजनल हे उर्मनेला डेवल पाभी नितपः राभी, सुव्रतनेम उद्दे श्यामने लावणार्धतिरा ॥ ढाल पोथी ॥ ॥ जान पयंपेनेभने श्ने, धन्य धन्य याध्व वंश ॥ निहां प्रलुग्भवत स्याने, मुळ मनमानस हंस न्योग्निनेमनेसे ॥शा धन्य शिवाहेवी भावडीने, समुह विन्ग्य धन्यताता सुन्नतग्गतगुरैसे, रत्नत्रयीज वातान्ग्योगाशाभरए। विराधी जीपनोश्ने, हुंनवभो वासुदेवान्योः पतिए भन नवि बीएससे भे, श्ररए। घरभनी सेवायोगाआहाथीने भडाध्वगस्योप्ने, न्नएं पीपाहेय हेयान्योगातोपएाहुनीश, दुष्टर्मनी लेयान्ययोगान्नापासरणी जलियातएशोभे,डीनें सीने अन्गान्ग्नाश्नेहुवां वचनने सांलती से, जांहे ग्रह्यानी सान्गान्योनल नेम उहे जेडाध्शीस्ने, समति युक्त नाराध गाथार्धश निनवर जारभोग्ने, लावि धोवीशियें सन्द्वान्नियोगाद्माउला ।यिनेभिन्निचर, नित्य पुरंदर, रेवतायस भंडएगो ॥जाएानव भुनि, पंहचरसें, रामनग रेसंयुएयो । संवेगरंग, तरंग नग्सनिधि, सत्यविन्यणुरै श्ननुसरी॥ पूरवि न्ग्यपि, क्षभाविन्यगणि, निनविन्य न्यसिरिघरी ॥शा राछति॥यास Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.
SR No.003689
Book TitleJain Kavyaprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages504
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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