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________________ ( १२८ ) पिडाररेशान्नि मुजें अय्यरे प्राणिया, पामशेलवतलो पाररेशाविना आप भाग्नेहथी संपहा सवि लड़े, टले उष्टनी डोडरे । सेवन्ने शिष्यजुषत्रे भनो, उहे डांति डर ब्लेड रे । विना१५॥उसा । श्नेम त्रिन्गलासए ज यस शासन, वर्द्धमान निनेश्वरे ॥घ प्रेमगुरे खुपसाय पाभी, संथूएयो जसवेसशान्निगुए। प्रसंगें लगी रंगें, स्तवन ने जाम्भोटेल विठ्ठलावें सुगावे, अंति सुजपाचे घएशो॥शा पर्छति ॥ जथ खेडादृशीनुं स्तवन ॥ ॥ नगपति नायडु नेभि निएछ, द्वारिका नगरी सभोसस्यान्गप तिचंहवा दृष्ण नरिह, लघ्व ठोऽशुं परिवरया ॥ शान्गपति घीगुडा स जभूल, लक्ष्ति गुणें भाषा रखी ।।नगपति पूछ पूछे कृष्ण, क्षायिङ सम कित शिवरैशि॥शानगपति श्यारित्र धर्मग्भशस्त, रक्त नारंल परिय ! हेन्गपति भुन जातभ डी-द्वार, डारएा तुम विएा डोए। उड़े।आनगप तितुभसरिजो भुन्ग्नाथ, माथे गाने गुएानिसो। नगपत्ति डोयीपाय जताव, नेमउरे शिववधू उतसो ॥ नानरपति अन्न्वस भागशिर भास जाराघो भेडाशीनरपति जेडशीनें पंथाश, उल्याएाउ तिथिपीएलसी॥घानरपति घ्श क्षेत्रे भए। डाल, योवीशी त्रीशे भली ॥ नरपति ने निनां उल्याएा, विवरी उहुंनागलवसी ॥धानश्पतिश्वर ही क्षानमि नाएा, भएसीन्न्म प्रत डेवसी ॥ नरपति वर्त्तमान श्रोवीशी, मांहे उष्याए म्ह्यांसी ॥णानरपति मौन पो जीपवास, होढशो न्प भाला गएणो । नरपति मन वयङाय पवित्र, यरित्र सुगो सुव्रत तपोद्यानरपति हाि एा घातडरीजंड, पश्चिम हिशि क्षुिडारथी ।। नरपति विनय पाटएाग्नलि धान, सायोनृपपन्नपासथी नरपति नारी यंत्रावती तास, पंभुजी गन्ग्गामिनी॥नरपति श्रेष्ठी शूर विज्यात, शीयल सतीला अभिनी षणानरपतिपुत्राहिङ परिवार, सार लूषएाचीवर घरी॥ नरपति व्लने नित्य निगेह, नमन स्तवन पूनउरे॥पशानरपति पोषे पात्र सुपात्र, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003689
Book TitleJain Kavyaprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages504
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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