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सिद्धि छायङ संस्तव्यो । पंचमी तप संस्तवन टोडर, शुंथी बिनउंहेंडव्यो। पुएय पाटए। क्षेत्रमांहे, सत्तर त्राएां संवत्सरें ।। श्री पार्श्वनन्म छुट्याए। हिवसें, सडस लविमंगल हरेर्धीत
॥ अथ साहिन्नि स्तवन ॥
॥ गरजानी देशीमांसाहिन्निएह अरिहंतापलुनम नेरेातुमें यो रिसन महारान्गाशुं हुं तुभनेरे ॥खाह पहोरमां जेऽघडी ॥ प्रवासाण्यं तमारे ध्यानपशुंगाथा मधुडरने भन भाल तीनान्भिभोराने भन मेहाशुंगा सीताने भन रामनामनाते भवाध्यो तुभशुंनेहाशुगाशारोहिणीने मन हलामिणावसी रेवा ये गन्ग्रान्गाथुंगा समय समय प्रलु सांलरे ॥ प्रनाभनडाभां महाराज्याशुंगा आनिःस्नेही थर्ध नविछूटीयें ॥मनाश्एशानंद उड़ायो शु पशुए श्वशुए। न्नेता रजे मनातोतारम् डेभदुहाजो॥शुंगानार सागी अलुपनी||नामुनेनगभे जीळ वाता शुंगाबाह्ये वातजने नहीं ।प्रनाभसीयें भूडी ल्यांताशुंगापासेवे चिंतामणि सेना तो त्रिभुवन नाथा शुंगाशी वातें छोड़ नहीं ॥ प्रणाहवेजाच्या भु हाथाशुंगााभुहनीवात भूडी परी॥ प्रनान्भिन्नगो निभ नाराशु सहगुई सुंदर उविरायनो ॥ त्रनापद्मने प्रलुशुं प्याशाशुंगानार्धति
॥ जथ सिद्धयक स्तवन ॥
॥ श्नवसर पाभीने रे, डीजें नव सांजिसनी खोसी ॥ भोली हर तांनापनये, ऋद्धि सिद्धि सहियें जहुली ॥ञ्जनाशास्त्राशीने थैनें जाहरशुं, सातमधी संलासीरे ॥ नासस मेहेली आंबिलडरशेत स घर नित्य हीवासी ॥जणाशा पूनमने हिन पूरी थाते, प्रमेशुं प जासी रे ॥ सिद्धयकने शुद्ध नाराधी, लपलपेप भाली।नगाआ हेहेरे नर्धने हेवब्लुहारो, श्नाहेसर अरिहंत रेशयोवीशे याहीने पूले
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