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________________ ( १२० ) सिद्धि छायङ संस्तव्यो । पंचमी तप संस्तवन टोडर, शुंथी बिनउंहेंडव्यो। पुएय पाटए। क्षेत्रमांहे, सत्तर त्राएां संवत्सरें ।। श्री पार्श्वनन्म छुट्याए। हिवसें, सडस लविमंगल हरेर्धीत ॥ अथ साहिन्नि स्तवन ॥ ॥ गरजानी देशीमांसाहिन्निएह अरिहंतापलुनम नेरेातुमें यो रिसन महारान्गाशुं हुं तुभनेरे ॥खाह पहोरमां जेऽघडी ॥ प्रवासाण्यं तमारे ध्यानपशुंगाथा मधुडरने भन भाल तीनान्भिभोराने भन मेहाशुंगा सीताने भन रामनामनाते भवाध्यो तुभशुंनेहाशुगाशारोहिणीने मन हलामिणावसी रेवा ये गन्ग्रान्गाथुंगा समय समय प्रलु सांलरे ॥ प्रनाभनडाभां महाराज्याशुंगा आनिःस्नेही थर्ध नविछूटीयें ॥मनाश्एशानंद उड़ायो शु पशुए श्वशुए। न्नेता रजे मनातोतारम् डेभदुहाजो॥शुंगानार सागी अलुपनी||नामुनेनगभे जीळ वाता शुंगाबाह्ये वातजने नहीं ।प्रनाभसीयें भूडी ल्यांताशुंगापासेवे चिंतामणि सेना तो त्रिभुवन नाथा शुंगाशी वातें छोड़ नहीं ॥ प्रणाहवेजाच्या भु हाथाशुंगााभुहनीवात भूडी परी॥ प्रनान्भिन्नगो निभ नाराशु सहगुई सुंदर उविरायनो ॥ त्रनापद्मने प्रलुशुं प्याशाशुंगानार्धति ॥ जथ सिद्धयक स्तवन ॥ ॥ श्नवसर पाभीने रे, डीजें नव सांजिसनी खोसी ॥ भोली हर तांनापनये, ऋद्धि सिद्धि सहियें जहुली ॥ञ्जनाशास्त्राशीने थैनें जाहरशुं, सातमधी संलासीरे ॥ नासस मेहेली आंबिलडरशेत स घर नित्य हीवासी ॥जणाशा पूनमने हिन पूरी थाते, प्रमेशुं प जासी रे ॥ सिद्धयकने शुद्ध नाराधी, लपलपेप भाली।नगाआ हेहेरे नर्धने हेवब्लुहारो, श्नाहेसर अरिहंत रेशयोवीशे याहीने पूले For Personal and Private Use Only www.jainelibraryatrg Educationa International
SR No.003689
Book TitleJain Kavyaprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages504
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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