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नङशीशी सीडयेंट,नाएं सीनें परीजलगाहेब धर्मशुन्नेर्धनेंन्द्र जाहरियें सुशीशीज शाशालणाश्रीणामुजुरे मुद्देव सुधर्मनेल, पर हरि यें विषनेभालना सुगुई सुहेब सुधर्भनें, श्रहीयें ग्नभृततेमा आल श्रीणाभूष धर्मतो नि उह्योल, समहित सुरती स्नेहशालनालवल वसुज संपत्तिथडीन्छ, समडितशुं घरी नेहशानालगाश्रीणासत्तरसेंछत्रीश समेन्छ, नल शुद्धि घ्शभी हीस लगासमति सीत्तरीजेर थील, पुर पाटए। सुरभीशा लगाश्रीगालएानेजुएलावशुं तोसेशोघ्नवियस श्रेयालिनाशांतिहर्ष चान्यङतगोल, उड़े निनहर्ष विनेयाशाला श्रीणा सर्छति॥रा
॥ अथ श्री जाराधनानुं स्तवन ॥
॥ हो ।सम्स सिद्धियम् सहा, श्रीवीशे निनराया सहगुई सा मिनी सरसती, प्रेमें प्रभुं पाय । शत्रिभुवनपति त्रिशषातगो, नंघ्न गुएागंलीशाशासन नायम्न्गन्यो, वर्द्धमान वड वीर शाशानेषु हिन वीरन्निएहने, थरोडरिपश्एगामाल विङलपना हित लएगी, पूछे गौत मस्वाभिप्रभुक्तिमार्ग आराधियें, उहो डिएापरेश्नरिहंतासुधासर सतववयन रस, लांजेश्री लगवंत मतियार खातोर्धयें, व्रत घरी यें गुरै सामान्य जमायो सयसने, योनि थोराशी साजपाविधिशुं वली वोसिरावियें, पापस्थान अढा राधार शरए। नित्य अनुसरो, निं हो दुरित आया शाशाशुलङरएगी अनुमोहियें, लाव ललोभन आणि श्नएएसए अवसर नाहरी, नवपद न्पो सुन्नए ॥णाशुलगतिश्नाराघन तएगा, जे छे घ्राष्ञधिङाशचित्त जाएगीने नहरो, नेम पाभो लवपाशानार्धति॥उना
॥ ढाल पहेली ॥
॥ से छिंडि डिहांराजी ॥ खेहेशी ॥
॥ ज्ञान हरिसए। चरित्र तपवीरन, जे पांधे आयाशाग्नेह ता
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