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(६२) चेतन रतन जगाउं रे
वहाला॥ता० ॥१॥ अष्ट करम कंडैकी धूनी, ध्याना अगन जलाजं ॥ उपशम बनने नसम बणा, मली मली अंग लगा रे
वदाला ॥ ता० ॥३॥ आदि गुरुका चेला हो कर, मोहके कान फराजं ॥ धरम शुकल दोय मुज्ञ सोदे,
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