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(३५६) के लंउन सोहत जास हरि ॥ तिसरा नंदन समजम कंदन लघुपणे कंपित मेरु गिरि । नमे नय चंद वदन विराजित वीर जिणंद सुप्रीत धरी ॥२५॥चोवीश जिनंद तना इह बंद लणे नविवृंद जे नाव धरी । तस रोग वियोग कुजोग लोग सवि पुरक दोहग दूर टरे ॥ तस अंगण बार न लाने पार सुमति तोखार हेखार करे । कहे नय सार सुमंगल चार घते तस संपद नूरिनरे॥२६॥ संवेगी साधु विजूषन वंश विराजित श्री नयविमल जनानंदकारी । तस सेवक संजमधार सुधारके धीरविमल गणि जयकारी ॥ तासदांबुज ढंग समान श्री नयविमल महाव्रत धारी, कहे ए बंद सुणो नविवृंदके नाव धरीने जणो नर नारी ॥२७॥ संपूर्ण।
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