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(३३७) करत कामना सुर पण याकी, जिनकू अनर्गलमाया रोपूणा रोदणगिरिजिमरतनखाणतिम, गुण सतु यामें समाया रे ॥ महिमा मुखथी वरणत जाकी, सुरपति मनशंकाया रे॥पूजा कल्पद सम संयम केरी, अति शीतल जिहां गया रे॥ चरणकरणगुणधरण महामुनि, मधुकर मन लोनाया रे॥पूजा या तन विण तिढुं काल कहो
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