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(३३५) शोनित श्री जगदाधार रे॥
अ०॥३॥ हारे जिहां नरपति खगपति
लदपति, सुरपति युत परखदा बार रे॥ लब्धि निधान गुण आगरु, जिहां गौतमसें गणधार रे॥
अ०॥४॥ हारे जिहां जीवादिकनवतत्त्वनो षट्मव्य नेद विस्तार रे॥ ए तो श्रवण सुणी निर्मल करे,
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