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(३२७) तुमे कुमतिके घर जावोगे, निज कुलमें खोट लगावो गे, धिक एल जगतनी खावो गे॥
हो प्री०॥॥ तमे त्याग अमी विष पीयो गे, कुगतिनो मारग लीयो गे, ए तो काज अजुगतो कीयो गे॥
हो प्री० ॥२॥ ए तो मोद रायकी चेटी, शिव संपत्ति एहथी बेटी ने,
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