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(२७५) तप जप संजम दानादिक सहु, गिणती एक न आवे रे॥ इंडिय सुखमें जौंलौं ए मन, वक्र तुरंग जिम धावे रे॥
विषय ॥१॥ एक एकके कारण चेतन, बहुत बहुत सुःख पावे रे॥ ते तो प्रगटपणे जगदीश्वर, इण विध नाव लखावे रे॥
विषयः॥॥ मन्मथ वश मातंग जगतमें,
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