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(२३०) ॥पद बावीशमुराग धन्याश्री॥ ॥अब हम ऐसी मनमें जाणी॥
__ अ०॥ ए आंकणी॥ परमारथ पथ समज विना नर, वेद पुराण कहाणी॥०॥२॥ अंतरलद विगत उपरथी, कष्ट करत बहु प्राणी॥ कोटि यतन कर तूप लहत नहीं, मथतां निशिदिन पाणी॥
अ० ॥३॥ लवण पूतली थाह लेणकू,
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