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( श्श्७ )
चिंतामणि तजी धरत चित्तमें, काचशकलकी यासा ॥ संतो० ॥ २ ॥
बिन वादर बरखा प्रति बरसत, बिन दिग वदत बतासा ॥ वज्र गलत दम देखा जलमें,
कोरो रहत पतासा ॥
संतो० ॥ ३ ॥
बेर अनादि पण उपरथी, देखत लगत बगासा ॥ चिदानंद सोही जन उत्तम,
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