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(२३) ॥पद अढारमुंगराग प्रनाती॥ मान कहा अब मेरा मधुकर॥
मान॥ए आंकणी॥ नाभिनंदके चरण सरोजमें, कीजें अचल बसेरा रे ॥.. परिमल तास लदत तन सहेजें, त्रिविध पाप तेरा रे॥
मान ॥१॥ उदित निरंतर झान जान जिहां, तिहां न मिथ्यात अंधेरा रे॥ संपुट होत नहीं तातें कहा,
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