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(२०६ ) हुं रागी तुं निपट निरागो, तुम हो निरीह निर्मम निष्काम॥ पण तोदे कारणरूप निरख मम, आतम नयो आतम गुणरामी
॥ ०॥३॥ गोप बिरुद निरजामक मादण, प्रगट धस्योतुम त्रिजुवन नामी॥ तातें अवश्य तारजो मोकू, इम विलोकी धीरज चित्त गमी
॥ अ ॥४॥
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