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( २०५) तब कुतर्क तोदे नांदि नडे रे
॥जी ॥४॥ ॥पद आठमुं॥ ॥राग काफी तथा वेलावल ॥ ॥ आतम परमातम पद पावे, जो परमातमशंलयलावा सुणके शब्द कीट नँगीको, निज तन मनकी शु६ बिसरावे॥ देखह प्रगट ध्यानकी महिमा, साई कीटमुंगी हो जावे॥आ
॥१॥
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