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॥ पद एंशीमुं ॥ राग सारंग ॥ ॥ चेतन शुभ् छातमकूं ध्यावो, पर परचे धामधूम सदाइ, निजपरचे सुख पावो ॥ चे० ॥ २ ॥ निज घरमें प्रभुता है तेरी, परसंग नीच कढ़ावो ॥
प्रत्यक्ष रीत लखी तुम ऐसी, गढ़ियें आप सुदावो ॥ ० ॥२॥ यावत् तृष्णा मोद है तुमको, तावत् मिथ्या जावो | स्वसंवेद ग्यान लदी करिवो,
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