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द्रौपदी
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जिन शब्द की इतनी व्याख्या कर देने के बाद द्रौपदी के कथन में वास्तविकता क्या है, यह बताया जाता है।
__ द्रौपदी का वर्णन ज्ञाताधर्म कथांग सूत्र के १६ वें अध्ययन में विस्तार पूर्वक आता है, जिसका संक्षिप्त सार यह है कि द्रौपदी ने सर्व प्रथम नागश्री के भव में धर्म-रुचि नामक महान् तपस्वी को मास खमण के पारणे में भिक्षा के समय कड़वी तुम्बी का हलाहल विष समान शाक जान-बूझकर बहराया और इस तरह उन महान् तपस्वीराज के जीवनान्त में कारण बनी, फलस्वरूप जन्मजन्मान्तर में अपरिमित दुःख सहती हुई मनुष्य भव में आई, शास्त्र में स्पष्ट बताया है कि - सुकुमालिका (द्रौपदी का जीव) चारित्र की विराधक हो गई और एक वेश्या को पांच पुरुषों के साथ क्रीड़ा करती देखकर उसने ऐसा निदान कर लिया कि - 'यदि मेरी तपश्चर्या का फल हो तो भविष्य में मुझे भी पांच पति मिले, और मैं उनके साथ आनन्द क्रीड़ा करूं' ऐसा निदान करके आलोचना प्रायश्चित्त लिये बिना ही मृत्यु पाकर स्वर्ग में गई, वहां से फिर द्रौपदी पने में उत्पन्न हुई। यौवनावस्था प्राप्त होने पर पिता ने उसके पाणिग्रहण के लिये स्वयंवर की रचना की, अनेक राजा, महाराजा आदि एकत्रित हुए। तब पूर्व कृत निदान के प्रभाव से विलास की भावना वाली द्रौपदी युवती ने स्वयंवर में जाने के लिए स्नानादि कर वस्त्राभूषणों से शरीर को अलंकृत किया फिर जिन-घर में जाकर जिन-प्रतिमा की पूजा करके स्वयंवर मण्डप में गई और वहां अन्य सब राजा, महाराजाओं को छोड़कर निदान के प्रभाव से पाण्डु पुत्रों के गले में वरमाला डालकर पांच पति की पत्नी बनी आदि।
इस कथानक पर से यह घटित होता है कि द्रौपदी ने जिस
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