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About A. - I. 1452 X The Lonka Sect arose and was followed by the Sthanakwasi sect, Dated which coincide strikingly with the Lutheran and Paritan movements in Europe. (Heart Of Jainism)
इस पर से स्पष्ट मालूम होता है कि श्रीमान् लोकाशाह ने हम पर बहुत उपकार किया। हमें ढोंग और धतिंग से बचाया। धर्म निवृत्ति में ही है, इस बात को बता कर बाह्य आडम्बरों से पिण्ड छुड़वाया । इतनी क्रांति मचा कर भी लोंकाशाह ने अपना मत या सम्प्रदाय स्थापित नहीं किया । किन्तु सत्य सनातन जैन धर्म सिद्धान्तों का ही प्रचार किया। उन महानुभाव ने धर्म क्रांति में मूर्ति-पूजा का प्रबल विरोध किया, साधु संस्था का शैथिल्य दूर किया तथा अधिकारवाद की श्रृंखला को तोड़ फेंकी। इतना करने पर भी वे एक संकुचित वर्तुल में ही बंधे हुए नहीं रहे, किन्तु विशाल क्षेत्र में पदार्पण किया और निर्भय होकर धर्म सुधार किया। जिससे धर्म के नाम पर होने वाली हिंसा रुकी और अहिंसा धर्म का फिर से उद्योत हुआ। ऐसे अहिंसा धर्म को वृद्धिंगत करने वाले वीर पुरुष का नाम लेकर कौन सत्य का पुजारी हर्षित नहीं होगा ? आखिर सत्य तो सत्य ही रहता है । फलस्वरूप इन्हीं सिद्धान्तों को मानने वाले लाखों की संख्या में हुए । धर्म को बाह्य रूप नहीं देकर आन्तरिक रूप दिया गया । आडम्बर में धर्म नहीं रह सकता, वहाँ स्वार्थ की छाया झलकती है। जहाँ स्वार्थ घुसा नहीं कि परोपकारी वृत्तियों के पैर उखड़े। धर्म प्राण लोकाशाह ने
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