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श्री लोकाशाह मत-समर्थन . १६५ ********************************************* धर्म के नाम पर मूर्ति-पूजा द्वारा हुई और हो रही है उतनी अन्य किसी भी कारण से नहीं हुई व न होगी। इसी मूर्ति-पूजा के नाम पर होती हुई हिंसा को मिटाने के लिए वीर रामचन्द्र शर्मा को अपने बलिदान करने की बारबार तैयारियां करनी पड़ती है। यद्यपि जैन समाज की मूर्ति पूजा में इस प्रकार की हिंसा नहीं होती, तथापि छहों काया के जीवों का याने एकेन्द्रिय से पंचेन्द्रिय तक के असंख्यात जीवों का घमासान तो हो ही जाता है और धर्मान्धता के चलते समय-समय पर एकान्त निन्दनीय ऐसी मानव हत्या, अरे अपने भाई की हत्या भी हो जाती है, जिसके लिए केसरिया तीर्थ हत्याकाण्ड का काला कलंक प्रसिद्ध ही है। ऐसी अनर्थ एवं अहित की मूल, पाखण्ड की प्रचारक व अन्धविश्वास की जननी इस मूर्ति पूजा को समझदार लोग कभी उपादेय नहीं कह सकते।
४०. अंतिम निवेदन इतने कथन के अन्त में अपने मूर्ति-पूजक बन्धुओं से सनम्र निवेदन करता हूँ कि वे व्यर्थ की धांधली और शान्त समाज पर मिथ्या आक्रमण करना छोड़कर शुद्ध हृदय से विचार करें और जिस प्रकार दयादान, सत्य संयम आदि हितकर धर्म की पुष्टि और प्रमाणिकता सिद्ध की जाती है उसी प्रकार मूर्ति-पूजा की सिद्धि कर दिखावें और यदि यह कार्य आगम सम्मत हो तो वह भी जाहिर कर दें कि अमुक उभय मान्य मूल सिद्धान्त में सर्वज्ञ प्रभु ने मूर्ति पूजा करने की आज्ञा प्रदान की है। इस प्रकार विधिवाद के स्पष्ट प्रमाण पेश करें, कथाओं की व्यर्थ ओट लेना और शब्दों की निरर्थक खींच तान करना, यह तत्त्वगवेषियों का कार्य नहीं किन्तु अभिनिवेष में
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