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१४० क्या बत्तीस मूल सूत्र के बाहर का साहित्य मान्य है? **************家多多容安安安安****************学 (या तलवार का म्यान) हाथ में लेकर आकाश में उड़ सकते हैं। घोड़े का रूप बना सकते हैं। इत्यादि इसके बाद यह बताया है कि- आत्मार्थी मुनि ऐसा नहीं करते और करेंगे वे ‘मायावी' कहे जावेंगे, उन्हें प्रायश्चित्त लेना पड़ेगा बिना प्रायश्चित्त के वे विराधक-आज्ञाबाहर होंगे।
इस प्रकार के कथन से श्री विजयानंदजी लब्धि फोड़ने की सिद्धि किस प्रकार कर सकते हैं? यहाँ तो लब्धि फोड़ने वाले को विराधक और मायावी कहा है, फिर यह अन्याय क्यों? और बिना किसी आधार के ही “संघ का काम पड़े तो लब्धि फोड़े" ऐसा क्यों कहा गया?
क्या साधु स्त्री रूप बना कर या घोड़ा बनकर या तलवार लेकर संघ की भक्ति या रक्षा करे? यह मायाचारिता नहीं है क्या? स्त्री रूप से संघ सेवा किस प्रकार हो सकती है? आदि प्रश्नों का यहाँ समाधान अत्यावश्यक हो जाता है। वास्तव में सूत्र में ऐसे कामों से शासन सेवा नहीं पर शासन विरोध और मायाचारीपन कहा गया है, अतएव यह भी अनर्थ ही है।
(७) मूर्ति मण्डन प्रश्नोत्तर पृ० २७८ में ठाणांग सूत्र में आये हुए "श्रावक" शब्द का अर्थ इस प्रकार किया है -
“ठाणांग सूत्र मां श्रावक शब्द नो अर्थ कर्यों छे त्यां (१) जिन प्रतिमा (२) जिन मन्दिर (३) शास्त्र (४) साधु (५) साध्वी (६) श्रावक (७) श्राविका, ए सात क्षेत्र धन खर्चवानों हुकम फरमाव्यो छे।"
इस प्रकार श्रावक शब्द का मन कल्पित ही अर्थ किया गया है। जब कि - सूत्रों में स्पष्ट श्रावक के कर्त्तव्य बताये गये हैं, उन सब की उपेक्षा कर मनमाना अर्थ करना साफ अनर्थ है।
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