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________________ [11] ******************************************* स्वच्छन्दता एवं धर्म के नाम पर हिंसा बढ़ने लगी। बढ़ते-बढ़ते आचार्य हरिभद्र सूरिजी के समय में धर्म के नाम पर हिंसा इतनी बढ़ गई कि आचार्य हरिभद्र सूरिजी ने अपनी पुस्तक “संबोध प्रकरण" लिखा है “आलोकों चैत्य अने मठ मां रहे छ। पूजा करवानो आरम्भ करे छ। फल फूल अने सचित्त पाणी तो उपयोग करावे छ। जिन मन्दिर अने शाला चणावे छ। पोताने जात माटे देव द्रव्य नो उपयोग करे छ। तीर्थना पंड्या लोकानी माफक अधर्म थी घननो संचय करे छ। पोताना भक्तों पर भभूति पण नाखे छ, सुविहित साधुओनी पासे पोताना भक्तों ने जवा देता नथी, गुरुओना दाह स्थलों पर पीठो चणावे छे। शासननी प्रभावना ने नामे लडालडी करे छ। दोरा धागा करे छे आदि।" इस प्रकार बतलाकर अन्त में आचार्य ऐसा कहते हैं कि “आ साधुओं नथी पण पेट भराओनु टोलुं छे। श्री हरिभद्रसूरिजी के समय में जब हिंसा स्वच्छन्दता एवं शिथिलता इतनी हद तक अपनी जड़ जमा चुकी थी तब धर्म प्राण लोकाशाह के समय तक यह कितनी बढ़ चुकी होगी इसका महज ही अन्दाज लगाया जा सकता है। ऐसे विकट समय में जैन शासन की रक्षा के लिए एक धर्मवीर की आवश्यकता हुई। फलतः विक्रमीय पन्द्रहवीं शताब्दी के वृद्ध काल में जिनशासन के पुनः उत्थान के लिए प्रभु महावीर के शास्त्रों में छिपे पुनीत सिद्धान्तों को उद्घाटित करने के लिए, पाखण्ड को विध्वंस के लिए धर्मप्राण क्रांतिकारी लोकाशाह का प्रादुर्भाव हुआ। आप सिद्धहस्त महान् प्रतिभावान, विचक्षण बुद्धि के धनी थे। आपको पठन पाठन का शौक था, फलतः आपने शास्त्रों का पठन-पाठन, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003679
Book TitleLonkashah Mat Samarthan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2002
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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