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________________ भयभीत हूँ। आप निष्पक्ष हो सुनें तो कहूंगा । ब्राह्मणों ने कहा- बताओ, यह सब कहां तक ठीक है (7) । मनोवेग ने कहा- पुराण, मानवधर्म (मनुस्मृति में कथित धर्म), अंग सहित वेद और चिकित्सा ये चार आज्ञासिद्ध है। तर्क से इनका खण्डन नहीं करना चाहिए । ये मनु, व्यास ऋषि के वचन हैं। इनका खण्डन करते वाला ब्रह्मघाती होता है । सदोष वचनों में प्रश्न करना निषिद्ध है। ब्राह्मणों ने कहा- मात्र वचन ले कहने में पाप नहीं लगता । तीक्ष्ण खड्ग' कहने से जिव्हा नहीं जलती और उष्ण अग्नि कहने से मुख नहीं जलता। अतः तुम निर्भय होकर पुराण वचनों का अर्थ करो। हम उसे विचार पूर्वक ग्रहण करेंगे (8)। भागीरथी और गांधारी कथा मनोवेग ने कहा- भागीरथी नाम की दो स्त्रियां एक ही स्थान पर सोती थीं। उन दोनों के स्पर्श मात्र से एक गर्भवती हो गई और उसका भगीरथ नाम का पुत्र उत्पन्न हुआ । यदि स्त्री के स्पर्श मात्र से गर्भ रह सकता है तो पुरुष के स्पर्श मात्र से मेरी माता को गर्भ कैसे नहीं रह सकता? इसी प्रकार गांधारी का विवाह धृतराष्ट्र के साथ निश्चित हुआ। उसके दो माह पूर्व ही वह रजस्वला हो गई। चतुर्थ दिन उसने स्नान करके फनस वृक्ष का आलिंगन किया । फलतः वह गर्भवती हो गई। वृद्धिंगत उदर देखकर विवाह तुरन्त कर दिया गया। उदरस्थ फनस फल से ही एक सौ पुत्र उत्पन्न हुए (9)। ___ मनोवेग के कहने पर ब्राह्मणों ने यह स्वीकार कर लिया कि उनके पुराणों में इस प्रकार का वर्णन मिलता है। तब मनोवेग ने कहा- यदि फनस के आलिंगन से पुत्रों की उत्पत्ति हो सकती है तो मेरी माता के पुरुष के स्पर्श मात्र से पुत्र की उत्पत्ति को आप असत्य कैसे मान सकते हैं ? जहां तक बारह वर्ष तक माता के गर्भ में रहने का प्रश्न है, वह भी व्यर्थ है। कहा जाता है, अर्जुन ने सुभद्रा को चक्रव्यूह की रचना का वर्णन किया था जिसे अभिमन्यु ने सुना था, तब मैंने तपस्वियों के वचन क्यों नहीं सुने ? (10) मय ऋषि कोपोन कथा और मंदोदरि इसी तरह बारह वर्ष तक गर्भ में रहने वाली बात भी प्रमाणित हो जाती है । एक समय मय नामक मुनि ने अपनी कोपीन एक तालाब में धोई। उस कोपीन में लगा हुआ वीर्य जल में गिर गया जिसे एक मेंढकी ने पी लिया। उसके पीने से मेंढकी गर्भवती हो गई । यथासमय उसके गर्भ से एक सुन्दर कन्या उत्पन्न हुई (11) । परन्तु मेंढकी ने उसे कमल के पत्ते पर रख दिया यह सोचकर कि यह शुभलक्षणा कन्या उसकी जाति की नहीं। जब मय (यम) मुनि वहां आया तो उसने उस सुंदरी को तुरन्त है। पहचान लिया कि यह मेरे वीर्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003672
Book TitleDhammaparikkha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherSanmati Research Institute of Indology Nagpur
Publication Year1990
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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