SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 292
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ इह मेवाडदेसि जणसं कुलि पावकरिदकुंभ दारणहरि तासु तु परणारिसहोयरु गोवड्ढ णा उप्पण्णउ तो गोवड्ढणासु पियगुणवद्द ताए जणिउ हरिसेण णामें सुउ सिरिचित उडु चएव अचलउरहो तहि छंदालंकारपसाहिय जे मज्झत्थमय आपणहि तें सम्मत्त जेण मलु खिज्जइ विक्कमणिव परिवत्तिय कालए इ उपणु भवियजण सुहयरु ज दहि जे लिहहि लिहावहि पुणु केहि पहि पढावहि यो अत्यु के विजे पयडहि जे णिसुणेवि परिक्खए भत्तिए १५८ (26) धत्ता - तहो पुणु केवलणाणहो णेयपमाणहो जीव पएसएहि सुहडिउ | वाहारहि अनंत अइसयवंत मोक्खसुक्खफल पर्याउ ॥ २६ ॥ (27) सिरिओजउर निग्गय धक्कडकुलि । जाउ कलहं कुसुलु णामें हरि । गुणगणणिहि कुलगयणदिवायरु | जो सम्मत्तरयणसं पुण्णउ ! जा जिणवरपय णिच्च वि पणवइ । जो संजाउ विवहकइविस्सुउ । गउयिकज्जे जिणहरपउर हो । धम्मपरिक्ख एह तें साहिय । ते मिच्छत्तभाउ अवगण्णहि । केवलणाणु ताण उप्पज्जइ । Jain Education International गयए वरिससह चउतालए । डंभ रहिय धम्मासयसायरु । ते दह जे भत्तिए भावहि । तेणियपरदुहु दूरे लुटावहि । ताण निरंतर सोक्ख हि सुहडहि । ते जुज्जहि णिम्मल मइ सत्तिए । 5 ( 25 ) 1.b मरु वेएं घं दिवि गुरुपयाई लइयई पुआपणिय चेयाई, 2b उपरेण वि कयई सुज्जलाइ कययहलु, b जलाई, 3.b उज्जोइयाई विज्जई जाणई संजोइयाई, 4.b घराई, b घवघवघवंत etc. to किंकिणिसराई, 5.a o किकिणि०, 6. b उलाई, 7a ताहि, b चंमंत for तजंत, 9.acवंदहि, b दिहिं जिणु हरिसेणनमंता, 10 a तहि | 5 ( 26 ) 2.a कुलीहि, 3 b परण्णारि, 4. समत्त०, 5.a जिणवरमुणिपयपिय गुणवइ, 6. b जाणिउ हरिसण णाम, a oदिस्सउ 7. b अचलउरेहो, 9.b आयण्णहि, b अवगण्णहिं, 10 b सम्मतु तेण गलु, a. page 137 is torn and pasted, so some letters from left side are naturally not found like केवलणा, हो जीवपएसए, सुक्खफलु पय ete. 11.bपएसएहिं सुहडिडं, 12 b अइसयदंतउ । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003672
Book TitleDhammaparikkha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherSanmati Research Institute of Indology Nagpur
Publication Year1990
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy