SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 185
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तह जारु विडवु मरणु लहेइ तें भणिउ अगणिय मयणहासु पइँ मावि खनमित्तु जंपि पुणु भणिज्जइ रयणिहि एहि संकेउ देवि गय गोवि जाम रवि कोडि जुत्तु पडिहाई गय पंचमसरु सरु पंचमसरासु नवोलु वोलु जुगरवयजलासु निलु विहारु णं असिपहारु पsिहाइ भाणु लहु अच्छवंतु समयम्मि जाए हरि जाए जाम जइ वोल्लावमि तो जणु सुणेए इय चितिऊण अंगुलिए जाम घरता - आणुराइय अंगु जाणिउ तहो सुयवयणए । ताए समपि अंग उद्दीविय मणमयणए ॥। ११ ॥ (12) ५१ जो तिय सोलह सहसण तित्तु परतियलंपडु घर आणियाहे संकरही कहाणउ कहिउ तुज्झ देवत्तणु वृज्झिउ केसवासु अह भणहि कंत कह पासि थवमि परभवि पुणु दूसह दुहु सइ । पिए पर मोहर विसयाहिलासु । जीवमिममि बहु सहनु तं पि । तद्यथा - अंगुल्या कः कपाटं प्रहरति कुटिले माधवः किं वसंतो । नो चक्री किं कुलालो नहि धरणिधरः किं द्विजिह्वः फणींद्रः । नाहं घोराहि मद्द किमसि खगपतिर्नो हरिः किं कपीशः । इत्येवं गोपवध्वा चतुरणमभिहितः पातुवश्चक्रपाणिः ॥ १ ॥ छिणिवेसण जणु परिहरेहि । हुउ दिवस परिससमु हरिहे ताम । कमलसयणु णं पज्जलिउ जलणु । कप्पूरू पुरु णं सायरासु । हरियंदणु मद्दणु तणुवलासु । आहारु णाइँ जीवावहारु | उग्गमिउ चंदु णावइ कयं तु । गोविहिघरु झंपणियइ ताम । मउणेण च्छंतु ण पिय मुणेइ । आहउ कवाडु सां भणइ ताम । Jain Education International इय चोरिए माणइ परकलत्तु । पिए सो ण जोन्गुतिय थवणिया हे । इँ अक्खि हुणिमणे ण गुज्झु । परतियलंपडु सिव कवणु वासु । अच्छइउ वाउ सो तुज्झ कहमि । घरता - अहवा महो पासि वंभणि जइ सुय मुच्त्रइ । णिरु थेरु वि अइकामिउ गिसुणहि सो जिह पुच्चइ ॥१२॥ 10 For Private & Personal Use Only 5 10 15 (11) 1.a आढविउ, b ० रमाणि, 3 b सरयवयणु, 4.b वोलिज्जइ, 5.a परकलुत्तु, 8. ल्लहेइ, 9.b पभणिउं, b मोहगुइ, 10.a पइमाणे विणु, a सहल, 11 सुयवयई । 20 www.jainelibrary.org
SR No.003672
Book TitleDhammaparikkha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherSanmati Research Institute of Indology Nagpur
Publication Year1990
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy