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________________ છે શ . છે V उ> अ = मउड उ > इ = किंपुरिस उ > ई = धीय > ओ = पोग्गल > उ = समुहि, कुटहंसगइ (3:15), पुव्व ऊ > ए = ने उर ऊ > ओ = तंबोल, मोल्ल > अ = धय, (3.4), कय > इ = किट्ठभिच्चु (4.6), धयरट्ठ (8.1), मिच्च (4.5), णिवसेहरु (3.1), मियंकपुत्त (3.3) ऋ > उ = पुहवि, वुड्ढु, वुड्ढी ऋ > ए = गेह, णेह ऋ > रि = रिसहो (10.11), रिसि (4.16), रिच्छि (4.17), ऋ > अरि = उब्भरिय 8. ए > इ = अणिमिस, पंचिदिय ऐ > ए = केलास, कज्जे, परिहए, मेहालए, हस्त्र ए का भी प्रयोग मिलता है- सरीरे, पुरे पलोएवि पेच्छेवि, लोयणाए, ऐ > अइ = दइयस्स (49), कइलास, दइव 9. ओ > उ = अण्णुण्ण ओ > ऊ = ऊसारिय ओ > -हस्व ओ = तहो, मंजरहो, दिवसहो, ससुरहो (8.3), ओ > ए = करेमि 10. औ > ओ = कोऊहलु (8.10), पियगोरि (11.3), मोत्तिय औ> अउ = गउरिय (4.9) 11. -हस्व स्वर की दीर्धीकरण प्रवृत्ति- सीस, बीया 12. दीर्घ स्वर का -हस्वीकरण- परिक्ख, तित्थ, रज्ज, विण 13. म्हस्व स्वर का अनुस्वारत्व- दंसण, अंसु, उंबर 14. स्वर लोप___i) आदि स्वर लोप - हलं, हेट्ठामुह, बलग्ग ii) मध्य स्वर लोप - पत्ति, उदिट्ठ, पडिलिउ iii) अन्त्य स्वर लोप- अब्भासें, सहावें, रोसें, सक्खें एउ 15. आदि स्वरागम : इत्थि 16. स्वरभक्ति : आयरिय, किलेस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003672
Book TitleDhammaparikkha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherSanmati Research Institute of Indology Nagpur
Publication Year1990
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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