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________________ प्रोषधोपवास, उपभोग, परिभोग, परिमाण और अतिथिसंविभाग व्रत दिये। हरिषेण ने शिक्षाक्तों का नामोल्लेख किया है- सामायिक, प्रोषधोपवास, रात्रिभोजन-त्याग और भोगोपभोग परिमाणवत । लगता है, आचार्य ने जिामंदिर दर्शन को स्वतन्त्र स्थान देकर उसको अधिक महत्व दिया है। भमिशयन, स्त्रीपरिहरण, जिनपुजन और सल्लेखना का भी यहां उल्लेख हुआ है। इनमें सल्लेखना को भी चतुर्थ शिक्षाव्रत के रूप में स्वीकार है। ११. धम्मपरिक्खा का व्याकरणात्मक विवेचन धम्मपरिक्शा शौरसेनी किंवा नागर अपभ्रंश में लिखो कृति है। उसकी संक्षिप्त विशेषतायें इस प्रकार हैंप्रयुक्त स्वर : अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, हस्व ए, ओ, म्हस्व ओ, अनुस्वार एवं अनुनासिक प्रयुक्त व्यंजन : क, ख, ग, घ, त, थ्, द्, ध्, न. प, फ, ब, भ्, म्, य, र, ल, व् स्, ह भाषाविज्ञान की दृष्टि से इन्हें हम इस प्रकार विभाजित कर सकते हैं1) खण्डात्मक स्वनिम .. . 1) स्वर : ii) व्यं जन 2) अधिखण्डात्मक स्वनिम i) अनुनासिकता र ii) सुरलहर iii)बलाघात 1. खण्डात्मक स्वनिम विवेचन स्वर विवेचन F स्वरों का वर्गीकरण तीन आधारों पर किया जा सकता है, यथा1) जिहवा का व्यवहृत भाग । - i) अग्र स्वर- इ, ई, ए ii) पश्च स्वर- आ, उ, ऊ, ओ iii) मध्यस्वर- अ. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003672
Book TitleDhammaparikkha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherSanmati Research Institute of Indology Nagpur
Publication Year1990
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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