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________________ जैन शास्त्रों की असंगत बातें ! ने शायद चन्द्रमा को अनन्त ज्ञान की दिव्यदृष्टि से न देख कर सादी आँखों से ही देखा होगा, जिससे चन्द्रमा का पूर्ण बिम्ब सूर्य से बड़ा दिखाई पड़ता है । १६ - सूर्य विमान से चन्द्र विमान को ३२०००० ( तीन लाख बीस हजार ) मील ऊपर बताना, जब कि इन दोनों में करोड़ों मील का फासला है और चन्द्रमा नीचा भी है । २० - सूर्य और चन्द्र ग्रहणों के लिये राहु के पिण्ड की कल्पना करना, जब कि राहु का कोई पिण्ड है ही नहीं । २१- पर्व राहु के विमान को, के विमान को, सूर्य विमान और चन्द्र विमान से ४ अंगुल नीचा बताना और साथ ही सूर्य और चन्द्र के विमान के बीच ३२०००० मील का अन्तर बताना | २२- नित्य राहु द्वारा चन्द्रमा की कलाओं की कल्पना बताना जिसका खण्डन आप पूर्व लेख में देख ही चुके हैं । २३- ग्रहों के उपग्रहों का नाम तक न बताना । २४ -- बुध, शुक्र, बृहस्पति, मंगल और शनि की ऊंचाई में तीन तीन योजन का फासला बताना जब कि बहुत अधिक अधिक मीलों की दूरी का अन्तर आप पूर्व लेख में देख ही चुके हैं । २५- प्रहों का अपनी अपनी कक्षा और अपने अपने अक्ष पर घूमने के बाबत कुछ नहीं कहना, जब कि अक्ष-भ्रमण साफ दिखाई पड़ता है । २६ - सब ग्रहों का व्यास एक समान बताना, जब कि बड़े बड़े अन्तर आप पूर्व लेख में देख ही चुके हैं। Jain Education International ८१ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003650
Book TitleJain Shastro ki Asangat Bate
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaccharaj Singhi
PublisherBuddhivadi Prakashan
Publication Year1945
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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