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जैन शास्त्रों की असंगत बातें !
है। पृथ्वी की गोलाई को जब हम यह बताकर साबित करते हैं कि पूर्व या पश्चिम एक ही दिशा में चलता हुआ मनुष्य जब उसी स्थान में पहुंच जाय जहां से वह रवाना होता है तो सिवाय इसके और कुछ हो ही नहीं सकता कि उसने एक गेन्द की तरह गोल पिण्ड पर चक्कर काटा है। तर्क को न समझने वाले भोले सज्जन इस पर भी कहने लगते हैं कि क्या आपने कभी इस तरह से जा कर अजमा के देखा है। ऐसे सजनों से कभी तो मैं कह बैठता हूं कि अगर आप हमारे साथ यह शर्त करें कि हम आपको हवाई जहाज से इस प्रकार पृथ्वी की परिक्रमा कराकर इस बात को साबित कर दें तब तो भ्रमण का सारा खर्च और ५००० रुपया आप हमें दें और हम साबित न कर सकें तो हम आपको देंगे। मगर इस लंदन में १८ घन्टे यानी २२३ मुहूर्त (जैन शास्त्रों से विरुद्ध) बड़े होने बाले दिन और रात के लिये तो शंका करने की गुञ्जाइश इसलिये भी नहीं रही कि अनेक सज्जन London में रहकर आये हैं जो इन बड़े अहोरात्रि ( दिन और रात ) को अच्छी तरह अनुभव कर चुके हैं। सच बात तो यह है कि उस वक्त इन विषयों के जानने के लिये कोई साधन मौजूद नहीं थे, जिस वक्त यह शास्त्र रचे गये। इसलिये बूजबुजागरजी की तरह सवाल का जवाब पूरा करने का प्रयास किया गया मालूम होता है । कुछ लोगों का यह खयाल है कि धर्म-शास्त्रों की वे बातें जो मनुष्य के मानसिक विकारों को शुद्ध करने के लिये विधान
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