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प्रस्तावना
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'जैन शास्त्रों की असंगत बातें' नाम की यह पुस्तक मेरे लेखों का संग्रह है। 'तरुण जैन' नामक मासिक पत्र जो कलकत्ते से श्री विजयसिंह जी नाहर तथा श्री भँवरमलजी सिंघी के सम्पादकत्व में प्रकाशित होता था उसमें सन् १६४१ की मई से सन् १९४२ के सितम्बर तक प्रतिमास लगातार ये लेख 'शास्त्रों की बातें' शीर्षक से प्रकाशित होते रहे। इसके पश्चात् 'तरुण जैन' का प्रकाशन स्थगित हो जाने के कारण मेरे लेख भी स्थगित रहे। फिर सन् १६४४ में तेरापंथी युवक संघ लाडनूं द्वारा बुलेटिन प्रकाशित होने लगे तब संघ के अनुरोध पर इन बुलेटिनों में शास्त्रों की बात' शोर्षक लेख मैने पुनः देने प्रारम्भ करदिये। 'तरुण जैन' में तीन चार लेख प्रकाशित होते ही सम्पादक महोदय के पास कुछ सज्जनों के पत्र आये जिन्होंने लिखा कि लेखक जैनशास्त्रों पर आक्रमण कर रहा है इसलिये तरुण जैन में इस प्रकार की लेख माला को स्थान नहीं दिया जाना चाहिये । इस के उत्तर में टिप्पणी देते हुए सम्पादक महोदय ने सितम्बर सन् १९४१ के 'तरुण' के अंक में मेरे उद्देश्य को संक्षेप में प्रकट
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