SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 25
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन शास्त्रों की असंगत बातें ! महाविदेह में उदय होने तक के कथन की बहुत थोड़े अंशों में संगति मिलाने की चेष्टा कर सकते हैं। मगर इन सूत्रों की मानी हुई महाविदेह भी तो बड़ी विचित्र है, जिसको थोड़ा सा बतला देना यहां उचित होगा। 'जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति' में महाविदेह क्षेत्राधिकार में लिखा है कि महाविदेह क्षेत्र ३३३८४०१ योजन यानी करीव १३४७३८००० मील चौड़ा और ३३७६७१र योजन यानी करीब १३५०७६००० मील लम्बा है। इसके चार विभाग हैंपूर्व विदेह, पश्चिम विदेह, उत्तर कुरु और देव कुरु। पूर्व और पश्चिम विदेह में रहने वाले मनुष्य ५०० धनुष यानी १७५० फीट लम्बे हैं और देव कुरु तथा उत्तर कुरु में रहने वाले तीन कोस लम्बे कद के हैं। इन मनुष्यों की ऊमर उत्कृष्ट एक करोड़ पूर्व की है यानी ७०५६०००००००००००००००००० वर्ष की है। इस महाविदेह क्षेत्र का वर्णन सूत्रों में बहुत विशद और विस्तार पूर्वक दिया हुआ है। केवल नमूने के तौर पर ऊपर की चन्द लाइनें लिख दी हैं। बिचारी अमेरिका के साथ इस विचित्र महाविदेह की संगति का मिलान किस तरह हो सकता है, यह तो पाठकों के विचारने का विषय है। सूत्रों की इन बातों को मक्षर-अक्षर सत्य मानने वाले सज्जनों से मैं अनुरोध करता हूं कि वे इन सब बातों का संतोषजनक उत्तर दें। तर्क, युक्ति, प्रमाण से सूत्रों की बताई हुई बातों को साबित करने का प्रयास करें। सूत्रों में इन सब विषयों का विस्तृत और सञ्चा वर्णन था, मगर वह विच्छेद (लुप्त) हो गया; ऐसा कह कर लीपा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003650
Book TitleJain Shastro ki Asangat Bate
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaccharaj Singhi
PublisherBuddhivadi Prakashan
Publication Year1945
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy