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जैन शास्त्रों की असंगत बातें !
हमने कब शास्त्रोंसे परामर्श किया था कि रेल, मोटर, हवाई जहाज, तार और बेतारका उपयोग करें या नहीं है ? किसी ज़माने में मारवाड़ी भाई, धार्मिक बाधा के नामपर विदेशी चीनी के कट्टर विरोधी थे। अब इन्हीं मारवाड़ी भाइयोंने, जैसे जावा और मॉरिशस में चीनी बनाई जाती है, उन्हीं तरीकोंसे चीनी बनाने के अनेक कारखाने खोले हैं । किन्तु कारखानों के पहले कभी उन्होंने शास्त्रों की व्यवस्था नहीं पूछी और पूछनेकी भी क्या जरूरत थी ? आखिर जो चीज हमें अपनी आखोंसे साफ़ दिखायो देतो हो, उसके लिए चश्मा चढ़ाना बेकार ही तो होगा ।
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एक प्रकांड शास्त्रज्ञ से गांधीजीने अस्पृश्यता के सम्बन्ध में शास्त्रका मत पूछा, तो पंडितजीने यह कहा था कि हिन्दू शास्त्र ऐसी वस्तु है कि जिस चीजकी चाह हो उसकी पुष्टिमें और साथ ही उसके खंडन में भी प्रमाण मिल सकते हैं । यह बात उन पंडितजीने शास्त्रोंकी मर्यादा घटानेको नहीं कही थी । कही थी केवल वस्तुस्थिति का दिग्दर्शन कराने के लिये । और उनकी इस उक्तिसे चोंक उठनेका भी कोई कारण नहीं है । हिन्दू धर्म में जैसा कि ईसाई मजहब में एक ही धार्मिक ग्रंथ '६. बल' है और मुसलमानों के यहाँ एक ही ग्रन्थ 'कुरान' है ऐसा कोई एक चक्रवर्ती ग्रन्थ नहीं है । यहाँ तो सदा से विचार-स्वातन्त्र्य रहा है । ( फल स्वरूप एक ही नहीं, चार वेद बने, एक नहीं, छः दर्शन बने, अनेक पुराण बने, अनेक
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