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________________ जन शास्त्रों की असंगत बातें ! बहुत सी बातें ऐसी लिखी हुई हैं जो भौगोलिक अन्वेषणों से प्राप्त हुए ज्ञान की सत्यता के मुकाबले में गलत सावित हो रही है, मनुष्य के अन्धविश्वासों की खिल्ली उड़ा रही हैं ! उस लेख में मैंने पृथ्वी की लम्बाई-चौड़ाई के बाबत केवल जम्बूद्वीप की लम्बाई-चौड़ाई बतला कर वर्तमान की बताई हुई पृथ्वी के माप से मुकाबला करके दिखाया था । मगर जैन सूत्रों में बताया गया है कि ऐसे ऐसे असंख्य द्वीप और असंख्य समुद्र इस पृथ्वी पर स्थित हैं और साथ ही यह भी कहा गया है कि प्रत्येक द्वीप से उस के चारों तरफ का समुद्र माप में दुगुणा और प्रत्येक समुद्र के बाहर चारों तरफ का द्वीप भी माप में दुगुणा है । इस दुगुणा करते जाने के क्रम को 'पन्नवणा सूत्र' के पन्द्रहवें इन्द्रियपद में एक चार्ट देकर चालीस संख्या तक तो द्वीपों तथा समुद्रों के नाम देकर बताया है और इसके आगे असंख्य द्वीप और असंख्य समुद्रों इसी दुगु क्रम से गणना करते जाने का कह कर पृथ्वी को अत्यन्त बड़ी दिखाने की कल्पना की है, जो बिचारशील पाठकों को नीचे दिये हुए उस 'पन्नवणा' सूत्र की तालिका से विदित हो जायगा । शास्वत बस्तुओं के माप में एक योजन चार हजार मील का माना गया है : १२ द्वीप एवं समुद्रों के नाम १ जम्बू द्वीप २ लवण समुद्र ३ धातकी खण्ड द्वीप Jain Education International For Private & Personal Use Only योजन संख्या १००००० २००००० ४००००० www.jainelibrary.org
SR No.003650
Book TitleJain Shastro ki Asangat Bate
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaccharaj Singhi
PublisherBuddhivadi Prakashan
Publication Year1945
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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