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________________ 'तरुण जैन' मई-जून सन १६४२ ई० अस्वाभाविक आंकड़े पाठकवृन्द, मेरे लेखों से अब आपको भली प्रकार अनुभव हो गया है कि जैन- शास्त्रों में असत्य, अस्वाभाविक और असम्भव प्रतीत होनेवाले प्रसंग एकाध नहीं, परन्तु अनेक हैं । मेरे लेखों में ही आप देख चुके हैं कि प्रत्यक्ष में असत्य प्रमाणित होनेवाली बातें सैंकड़ों की संख्या में आपके सन्मुख आ चुकी हैं । गत मार्च और अप्रेलके लेखों में असत्य, अस्वाभाविक और असम्भव तीनों ही तरह की कल्पनाओं का वर्णन है । - प्रस्तुत लेख में पहले तीर्थंकर भगवान ऋषभ देव से लगाकर चौबीसवें भगवान महावीर तक प्रत्येक भगवान की आयु, देह मान, साधुत्वकाल और उनके कैवल्यज्ञान प्राप्त साधुसाध्वियों की संख्या का जैन - शास्त्रों में जो वर्णन किया है, वह बतलाऊंगा। इन आँकड़ों में असत्य, अस्वाभाविक और असम्भवपन का कितना भाग है, इसका निर्णय करना तो आपके हृदय और विवेक का काम है; मगर बुद्धि और अकल का तो यह तकाजा है कि बताई हुई संख्याएं अक्षर अक्षर सत्य कदापि नहीं हो सकतीं । जैन - शास्त्रों में चौबीसों भगवान की आयु, शरीर की लम्बाई साधुत्वकाल आदि के विषय में जो बतलाया है वह इस प्रकार है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003650
Book TitleJain Shastro ki Asangat Bate
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaccharaj Singhi
PublisherBuddhivadi Prakashan
Publication Year1945
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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