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जन शास्त्रों की असंगत बातें !
दिखाने के लिये क्या प्रयत्न करते हैं ? परन्तु अभी तक किसी ने भी मेरे प्रश्नोंके समाधान करने का प्रयास तक नहीं किया। मुझे अव यह विश्वास हो गया है कि जैन शास्त्रों की असत्य, अस्वाभाविक और असम्भव प्रतीत होनेवाली बातों के समाधान करने का किसी का भी साहस नहीं हो सकता। कारण, यह बातें वास्तवमें ही ऐसी हैं । अतः मैं यह चुनौती देता हूं कि कोई सज्जन शास्त्रों की इन बातों का समाधान कर दिखावें । · गत लेख में मैंने कहा था कि भविष्य में केवल असत्य प्रमाणित होनेवाली बातों पर ही लगातार न लिख कर कभी असत्य, कभी अस्वाभाविक और कभी असम्भव प्रतीत होनेवाले विषयों पर लिखा करूंगा; अतः प्रस्तुत लेख में जो बातें लिख रहा हूं वह इन तीनों स्तम्भों को ही प्रदर्शित करने वाली हैं। इसमें कुछ भाग असत्य, कुछ अस्वाभाविक और कुछ असम्भव है । जैन शास्त्र जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति के कालाधिकार में काल (समय) के माप की गणित बताई हुई है, जो इस प्रकार हैअसंख्यात समय
१ आबलिका ३७७३ आवलिका
१ उश्वास ३७७३ आवलिका
१निश्वास ७५४६ आवलिका =१ श्वासोश्वास या पाणुकाल ७ पाणुकाल
११ स्तोक ७ स्तोक
१ लव ७७ लव
१ मुहूर्त-यानी
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