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________________ जैन शास्त्रों की असंगत बातें ! देने का दावा कर सकते हैं या करते हैं, वे ज्ञान का विकास करने वाली बुद्धि पर अन्धश्रद्धा की चाबी से ताला क्यों लगा देते हैं ? यह तो मनुष्य की बुद्धि पर शास्त्रों द्वारा शोषण होना कहा जायगा। हम समाज को इस तरह के शोषण का शिकार होने से बचने के लिये आगाह करना अपना कर्तव्य समझते हैं। जिन धर्म-गुरुओं के द्वारा शास्त्रीय शोषण का यह व्यापार निरन्तर चलता है, वे मनुष्य की बौद्धिक जागृति के शत्रु हैं, और उस शत्रुता का वे इसलिये निर्वाह करते हैं क्योंकि उनके पेट का निर्वाह भी उसी से होता है। पर नवयुवकों को इस विषय में अपना कर्तव्य कभी नहीं भूलना चाहिये। इस विषय में श्री बच्छराजजी एक लेख-माला लिख रहे हैं--जिसका यह पहला लेख है। इसमें जैन शास्त्रों की भौगोलिक बातों पर विचार किया गया है। यह विषय गणना से सम्बन्ध रखता है, इसलिये बहुत सरस नहीं मालूम पड़ता, लेकिन लेख-माला के उद्देश्य को समझने में काफी मददगार होगा। -~संपादक ] पृथ्वी का आकार और गति जैन शास्त्रों में वर्णित कतिपय विषयों पर जब हम निष्पक्ष दृष्टि से विचार करते हैं तो उनमें भी बहुत सी बातें अन्य मजहबों की ही तरह कपोल-कल्पित दृष्टिगोचर होने लगती हैं। या तो उनमें कोई रहस्य छिपा हो सकता है जिसको हम समझ नहीं पाते हों या ऐसी बातों के रचने वाले खुद ही अन्धेरे में थे Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.003650
Book TitleJain Shastro ki Asangat Bate
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaccharaj Singhi
PublisherBuddhivadi Prakashan
Publication Year1945
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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