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________________ गाँव के थे । उनकी परंपरा अब भी यहाँ पर है, जो कोई जैन तामिलनाडु में नजर आ रहे हैं वे सबके सब फिर से जैन धर्म में पुनः दीक्षित किये गये थे । इनकी कृपा नहीं होती तो आज एक भी जैन नजर नहीं आता । यहाँ के जैन ओडयार श्रावक महानुभाव की सेवा प्रशंसनीय ही नहीं अपितु अनुकरणीय भी है । महासभा से अनुदान दिया गया था । तोरप्पाडी :- यहाँ पुष्पदन्त भगवान् का १५०० वर्ष प्राचीन जिनमन्दिर है। यह जीर्ण अवस्था में है । महासभा की सहायता से इसका जीर्णोद्धार हुआ था किन्तु पूरा नहीं हो सका । यहाँ अन्य धातु की प्रतिमायें हैं । यह जिंजी से ८ कि. मी. पर है । यहाँ १५ दिगम्बर जैनों के घर है । यहाँ पर जीर्णोद्धार की बड़ी आवश्यकता है । पेरंबुकै :- यह जिंजी से चार किलोमीटर पर है। यहाँ एक २०० साल प्राचीन जिनमन्दिर है । मूलनायक मल्लिनाथ भगवान् है। शासन देवताओं की मूर्तियाँ हैं । यहाँ अक्षय तृतीया के दिन अच्छे ढ़ंग से आहार-दान की विधि करायी जाती है । गाँव से डेढ़ किलोमीटर पर एक गुफा है उसमें करीब बीस शय्यायें हैं । इसमें आचार्य निर्मलसागरजी, शांतिसागरजी एवं आचार्य वर्धमानसागरजी महाराज के चरण-चिह्न स्थापित किये गये हैं। यह पहाड़ की तलहटी में है। इससे पता चलता है कि इस पर्वत की गुफा में मुनिगण तप किये होंगे और वे आहार के लिये नीचे गाँव में जाते रहे होंगे । सुन्दर वातावरण है । मुनियों के योग्य स्थान है । यहाँ बाहर में २००० वर्ष पूर्व की आदिनाथ भगवान् की मनोज्ञ प्रतिमा है । जीर्णोद्धार की बहुत जरूरत 1 वीणामूर :- यह मेलचित्तामूर से ५ कि. मी. पर है। यहाॅ श्री आदिनाथ भगवान् का २००० Jain Education International 65 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003645
Book TitleTamilnadu Digambar Tirthkshetra Sandarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatvarshiya Digambar Jain Mahasabha Chennai
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2001
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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