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________________ हैं। इसे कडलूर भी कहते हैं । यह जैन लोगों का मुख्य स्थान था । प्राचीनकाल में यहाँ जैन मठ एवं मन्दिर थे । यहाँ का जैन मठ अति प्राचीन था । यहाँ के सर्वनन्दी नाम के श्रमण साधु महात्मा ने 'लोकविपाकं' नाम के शास्त्र को अर्धमागधी भाषा से संस्कृत भाषा में अनुवादित किया था। वे दोनों भाषा के मूर्धन्य विद्वान् थे। उस शास्त्र से पता चलता है कि यह कार्य शक वर्ष ३८० में (ई.४५८) कांजीपुरं के नरेश नरसिंहवर्म के २२ वें वर्ष में हुआ था। इस पाटलीपुर मठ के अन्दर शास्त्राध्ययन कर इस पीठ के प्रधान साधु के रूप में जो धर्मसेन थे उन्होंने शैव बनकर बाद में जैन धर्म के प्रति बड़ा अनर्थ किया था। वह प्रधान शैव भक्तों में से एक हो गया था। यह 'अप्पर' के नाम से पुकारा जाता था । इसी व्यक्ति ने शैव होने के बाद जैन मठ को तुड़वाकर उसके पत्थरों से 'पुणपर' के द्वारा तिरुवदिकै में शैव मन्दिर बनवाया था। इस स्थान में जैन मन्दिर था - इसका आधार यह है कि मंजकुप्पं यात्री बंगले के पास एक जैन मूर्ति मौजूद है । इसकी ऊँचाई चार फुट है। तिण्डिवनम् :- यह एक शहर है । यहाँ एक जैन मन्दिर है विशाल चन्द्रप्रभ भगवान् की मनोज्ञ प्रतिमा है। शासन देवताओं की मूर्तियाँ हैं । धर्मशाला है। यहाँ का मन्दिर नवीन है। इसकी प्रतिष्ठा भी हो चुकी है। इस शहर में लगभग दिगम्बर जैनों के २०० घर हैं किन्तु धार्मिक वातावरण कम है । चेन्नई से १०० कि.मी. दूरी पर है। सिरुकडंबूर :- (तिरुनाथ'न्ट्र) यह जिंजी से २ कि.मी. पर है। यहाँ के तालाब के चट्टान पर ४-५ फुट की जिन प्रतिमा उत्कीर्ण है। इसके पास एक बड़ी चट्टान पर २४ तीर्थंकरों की पद्मासन 60 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003645
Book TitleTamilnadu Digambar Tirthkshetra Sandarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatvarshiya Digambar Jain Mahasabha Chennai
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2001
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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